Friday 14 October 2011

ये हजार बच्चे आपके

कुछ  दिनों से फोन बार-बार आ रहे थे . एक सज्जन रोज कहतें हैं - हमें आपसे मिलना है, हम स्कूल मैं कुछ करना चाहतें हैं. आज उन्हें समय दिया.समय पर वो आगये. एकदम भद्र पुरुष . परिचय हुआ. साथ-साथ चाय पी गयी .

बात का दौर शुरू हुआ . वो कुछ इस तरह था-

हाँ साहब अब बताइये ,मैं आपके लिए क्या सेवा कर सकता हूँ ?

आगंतुक महानुभाव ने एक बार गहरी सांस ली. धीरे से बोले- मैं सीधे-सीधे काम की बात पर ही आ जाता हूँ. हाँ जी, बात यह है कि इस विद्यालय की स्थापना में मेरे पिता का योगदान रहा है.मैंने भी यहीं से पढ़ाई आप जैसे गुरुजन से की है.

मैंने साश्चर्य कहा- वाह क्या बात है?
उन्होंने कहा- हाँ, पिता को जन्म के सो साल पूरे होने जा रहें हैं .
मैंने ख़ुशी प्रकट करते हुए कहा - वाह-वाह ! क्या खूब कही. बधाई हो सर.
वो बोले -धन्यवाद. तो साहब हम उनकी याद में यहाँ कुछ बनवाना चाहते हैं.
में बहुत प्रसन्न था -बहुत अच्छा सर .

उन्होंने मेरे चेहरे पर आँखे गड़ाते हुए कहा- आप के स्कूल की क्या आवश्यकता है ?
मैंने सबसे पहले उन्हें पांच कक्षा-कक्षों की एक पूरी श्रृंखला बता दी . उन्होंने नाप जोख निकाला. अनुभव बोलने लगा.उन्होंने कहा -साहब यह मामला तो सत्रह लाख का है ?
मैंने कहा- हाँ सर.
वो मेरी तरफ मुखातिब होकर बोले - आप मुझे सर-सर नहीं बोलें .

में गंभीर होते हुए बोला - तो में आपको क्या बोलूँ ? अच्छा में आपको भाई साहब बोलूँ ?

वे खुश हो गए और बोले- हाँ ,यह बिलकुल ठीक है. हाँ तो में कहा रहा था कि यह सत्रह लाख का खर्चा है. मेरा बजट दस-ग्यारह लाख का है.उन्होंने अपनी और से इशारा करते हुए कहा- वहाँ , उस जगह हम एक होल बनवा देते हैं.

मैंने कहा-आइये भाई साहब , में एक और योजना आपको दिखाता हूँ. मैंने उन्हें तीन कक्षा-कक्षों की श्रृंखला बताई .सारी योजना देख कर खुश हुए .
उन्होंने उसे बनवा देने की शपथ ले ली .

जाने लगे. में विदा करने के लिए बढ़ा .मुझे रोकते हुए कहा- नहीं-नहीं .आप अब नहीं आयें.मैंने वैसे ही बहुत कष्ट दिया है.
मैंने कहा- नहीं भाई साहब , मुझे आने दीजिये, यह मेरा अधिकार है.
उन्होंने कहा- नहीं बस यहाँ तक काफी है.

मैंने दृढ़ता से कहा - भाई साहब हम दोनों को बच्चे देख रहें हैं . मैंने आपको ससम्मान विदा नहीं किया तो मेरे बच्चे क्या सीखेंगे ?

वो बोले- वाह क्या बात है. आपने मुझे निरुतर कर दिया. चलिये.हम साथ हो लिए.में बहुत उल्लसित और खुश था . दरवाजे के बाहर गाड़ी खड़ी थी. यकायक रुके और बोले - भगवान् की दया से मेरे पास सब कुछ है परन्तु..............

वो रुक गए. उनका कंठ रुंध गया.मेरे हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा- गत वर्ष मेरा लड़का चला गया. बहुत कुछ है पर कोई खाने वाला नहीं.

इस बार मेरा कलेजा थम सा गया . मैंने उनकी आँखों में तैरते हुए उस पिता के दर्द को देखा. मेरी ख़ुशी कहीं खो गयी.
मैंने उन्हें धैर्य बंधाते हुए कहा- भाई साब ये हजार बच्चे आपके मानों , में भी तो.......

उन्होंने मेरे कन्धों को दबाते हुए कहा- वाह, सब कुछ मिल गया.अब वो बहुत उल्लसित और खुश थे और में बिलकुल उदास.

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