Saturday, 29 October 2011

आग लगी जिसके घर में,बैठ वहाँ पर सुबक रहा.

आग लगी जिसके घर में,बैठ वहाँ पर सुबक रहा.
पास -पडौस इकट्ठा होकर , हाथ  करारे ताप रहा.

                  गुरु-चर्चा होगी ,लेखन होगा ,
                  रपट के सह विज्ञापन होगा ,
                  सब अपनी रोटी सेंक चलेंगे,
                  शेष पसारा - जलावन होगा.


जिसका सब कुछ चला गया,वह बैठा छाती पीट रहा.
हमदर्दी में जो हाथ बढ़ा था, वो ही उसको जला   रहा.

                   कुछ  नोचेंगे , कुछ  झपटेंगे ,
                   कुछ दाँत  गड़ायेंगे  गर्दन में, 
                   कुछ  झूमेंगे , कुछ  अकड़ेंगे ,
                   कुछ फूले न समायेंगे मर्दन में ,


जो लुटा गया है छला गया है, पदाघात से उछ्ल  रहा .
रक्षा हेतु  जो कदम बढ़ा था , वो ही उसको पीस  रहा.














































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