देखते हैं तत्र कपि , कुछ भिन्न भाग एक,
निर्मल आलोक वहाँ , सब कुछ शांत है.
विरुद्ध स्वभाव भूत , चर रहें साथ-साथ,
सिंह-अजा मित्र सम , द्वेष यत्र सांत है.
श्येन- व्याल साथ रह , अहिंसा भाव रचते ,
द्विज वहाँ उल्लसित,कोई नहीं क्लांत है.
सुधा सम नीर बहे, शीतल समीर बहे ,
विनीत हैं पञ्च-तत्त्व , कौन कहाँ भ्रांत है.
राम -चर वहाँ गये , अद्वितीय आकर्षण ,
मंद-मंद वायु बहे , क्षीण जल-धार है .
शाख-शाख झूमती है , पत्र करे झरमर ,
रवि किरणे नाचतीं , सघन गुंजार है .
सरल सरस ध्वनि , श्रुति को संपन्न करे,
तत क्षण आये शत, मन में विचार हैं.
ओह ! राम रमापति , निर्जन इस प्रांत में,
राम-राम मन्त्र गूंजे,कैसा व्यवहार है.
सुरोहित सुवृक्ष से , आंजनेय देखते हैं ,
सुमुखी - सुमंगला वो , आम्र तले है रोती .
अति क्षीण तन हुआ, शिथिल है गात्र हुआ ,
बल - हीन वाणी ले के , राम को पुकारती.
भुज द्वय घुटनों पे , सर धर लपेटती ,
जीर्ण हुई साडी खींच,खुद को वो ढांकती.
सज्जा हीन वेणी एक , प्रसरित भाल -बिंदु ,
घायल कपोती सम ,प्राण को वो धारती.
निर्मल आलोक वहाँ , सब कुछ शांत है.
विरुद्ध स्वभाव भूत , चर रहें साथ-साथ,
सिंह-अजा मित्र सम , द्वेष यत्र सांत है.
श्येन- व्याल साथ रह , अहिंसा भाव रचते ,
द्विज वहाँ उल्लसित,कोई नहीं क्लांत है.
सुधा सम नीर बहे, शीतल समीर बहे ,
विनीत हैं पञ्च-तत्त्व , कौन कहाँ भ्रांत है.
राम -चर वहाँ गये , अद्वितीय आकर्षण ,
मंद-मंद वायु बहे , क्षीण जल-धार है .
शाख-शाख झूमती है , पत्र करे झरमर ,
रवि किरणे नाचतीं , सघन गुंजार है .
सरल सरस ध्वनि , श्रुति को संपन्न करे,
तत क्षण आये शत, मन में विचार हैं.
ओह ! राम रमापति , निर्जन इस प्रांत में,
राम-राम मन्त्र गूंजे,कैसा व्यवहार है.
सुरोहित सुवृक्ष से , आंजनेय देखते हैं ,
सुमुखी - सुमंगला वो , आम्र तले है रोती .
अति क्षीण तन हुआ, शिथिल है गात्र हुआ ,
बल - हीन वाणी ले के , राम को पुकारती.
भुज द्वय घुटनों पे , सर धर लपेटती ,
जीर्ण हुई साडी खींच,खुद को वो ढांकती.
सज्जा हीन वेणी एक , प्रसरित भाल -बिंदु ,
घायल कपोती सम ,प्राण को वो धारती.
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