हनुमान कथन से , राम गुरु गंभीर हो ,
कहते हैं वानर से , सीता हाल कहिये .
आप मम हितकारी , सखा और सेवक भी ,
अभय समझ कर , हर बात कहिये .
अतुलित बल युक्त , संकट मोचक रह ,
मम सह सुपूजित , वरदायी बनिये.
सीता शोध सुकृत है , रक्ष-तंत्र विकृत है,
अब सीता संवाद को , खुल कर कहिये.
तब हनुमान सादर , कंकण को सोंप कहे ,
प्रभु सीता सहिदानी , आप हेतु लाया हूँ .
कंकण को देख प्रभु , वक्ष पे लगाये कहे ,
अरे सखा ! कंकण को , मैं खूब जानता हूँ .
अरे यह कंकण तो , वरमाल सह देखे ,
कर-कंज भिन्न देख , त्रास ही तो पाता हूँ .
सजल नयन हुए , कंठ रुद्ध होता जाता,
प्रिये ! तुम्हे कष्ट में ही , सदा लिप्त पाता हूँ .
राघव को त्रस्त देख , लक्ष्मण उद्दीप्त हुए ,
मुख रक्त रवि सम , तत्क्षण ही हो गया .
कर गहे वज्र धनु, अवयव दृढ हुए ,
वर वीर व्याघ्र सम , क्रुद्ध वह हो गया.
प्रभंजन अंतर में , उमड़ चला है पर ,
राम अनुशासन में , स्वर रुद्ध हो गया.
अनुज की प्रतिक्रिया , देख कहते हैं राम ,
कपि! सीता-सन्देश तो , अवरुद्ध हो गया.
nice,carry on best of luck
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