नद-श्रोत सम यूथ , बढ़ते बढाते हुए ,
कपिराज समक्ष हो , मिलते मिलाते हैं .
कपि-ऋक्ष मिल कर , संत्रास को कहते हैं,
कैसे निशाचर शिशु , खाते हैं खिलाते हैं.
वनवासी वृन्द सब , आतंक को कहते हैं ,
कैसे रक्ष - तंत्र उन्हें , दलते दलाते हैं.
लूट लिया मार दिया, दलन - दमन किया,
शोषक पे दोष वहाँ , लगते लगाते हैं.
कपि-ऋक्ष-वनवासी , एकत्रित होते गये ,
मानो कोई ताल वहाँ , बढ़ा चला जाता है.
पीत कपि अगणित , हिलते सुदूर तक ,
जैसे कोई धानी क्षेत्र , झूम-झूम जाता है.
श्याम ऋक्ष भीम काय , गरज के लरजता ,
मानो घन मंडल ही , गर्जन मचाता है.
शत कोटि वनवासी , लय सह झूमते हैं,
जलधि में वायु जैसे , तरंग उठाता है.
अतुलित सैन्य-दल , जाम्बवंत देख कर ,
सुग्रीव समीप जा के , निवेदन करते .
कपिराज आदेश से , यूथपति पहुंचे हैं ,
अब अग्र आदेश की , प्रार्थना वे करते.
कपि-ऋक्ष वृन्द सह , वनवासी पहुंचे हैं ,
राम लोक नायक हैं , उद्घोष वे करते .
सुग्रीव-लक्ष्मण सह , रामाज्ञा की कामना में ,
कपि-ऋक्ष वनवासी , जयघोष करते .
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