Tuesday, 14 February 2012



नद-श्रोत सम यूथ , बढ़ते बढाते हुए ,
                      कपिराज समक्ष हो , मिलते मिलाते हैं .
कपि-ऋक्ष मिल कर , संत्रास को कहते हैं,
                      कैसे निशाचर शिशु , खाते हैं खिलाते हैं.
वनवासी वृन्द सब , आतंक को कहते हैं ,
                      कैसे  रक्ष - तंत्र  उन्हें , दलते  दलाते  हैं.
लूट लिया मार दिया, दलन - दमन किया,
                      शोषक  पे  दोष  वहाँ , लगते  लगाते  हैं.


कपि-ऋक्ष-वनवासी , एकत्रित होते गये ,
                      मानो कोई ताल वहाँ , बढ़ा चला जाता है.
पीत कपि अगणित , हिलते सुदूर तक ,
                      जैसे कोई धानी क्षेत्र , झूम-झूम जाता है.
श्याम ऋक्ष भीम काय , गरज के लरजता ,
                      मानो  घन  मंडल  ही , गर्जन  मचाता है.
शत कोटि वनवासी , लय सह झूमते हैं,
                      जलधि  में  वायु जैसे  , तरंग  उठाता  है. 


अतुलित सैन्य-दल , जाम्बवंत देख कर ,
                       सुग्रीव समीप जा के , निवेदन करते .
कपिराज आदेश से , यूथपति पहुंचे हैं ,
                       अब अग्र आदेश की , प्रार्थना वे करते.
कपि-ऋक्ष वृन्द सह , वनवासी पहुंचे हैं ,
                       राम लोक नायक हैं , उद्घोष वे करते .
सुग्रीव-लक्ष्मण सह , रामाज्ञा की कामना में ,
                        कपि-ऋक्ष वनवासी , जयघोष करते .                     

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