हनुमान विनत हो , कहते हैं सभा मध्य ,
लंका बनावट को मैं , देख कर आया हूँ .
पीन परकोट तत्र , द्वार चार-चार यत्र ,
जटिल है यंत्र-तंत्र , ज्ञात कर आया हूँ.
वारि युक्त खाई जहाँ , भयंकर जलचर ,
पद-पद काल देख , बच कर आया हूँ .
वर वीर युक्त दल , सुविस्तृत है वाहिनी
रावण की क्षमता को , तोल कर आया हूँ.
सदन बने हुए हैं , पीन परकोट पर ,
परकोट पालक जो ,निशाचर रहते .
हर एक द्वार पर , काष्ठ सेतु बने हुए ,
वारि युक्त खाई पर , आच्छादित रहते.
कई-कई यंत्र वहाँ , स्वतः संचालित हैं ,
अरि और मित्र पर , तीक्ष्ण दृष्टि रखते.
यत्र-तत्र सैन्य-दल , रक्षण में लगे हुए ,
आगमन - निर्गमन , उचित परखते .
नद-नाल कई-कई , सघन है वन वहाँ ,
दुर्गम भूधर वहाँ , गमन कठिन जो .
गह्वर हैं खड्ड जहाँ , दुर्गम है घाट वहाँ ,
रवि-चन्द्र दिखे नहीं , अन्धकार राज जो.
है भूल भूलैया अति ,विभ्रम ही विभ्रम है ,
दिशा ज्ञान होता नहीं , निशाचरी तंत्र जो.
छिपे हुए निशाचर , छल करे घात करे ,
कोई नहीं बच पाए , रावण का राज जो.
लंका बनावट को मैं , देख कर आया हूँ .
पीन परकोट तत्र , द्वार चार-चार यत्र ,
जटिल है यंत्र-तंत्र , ज्ञात कर आया हूँ.
वारि युक्त खाई जहाँ , भयंकर जलचर ,
पद-पद काल देख , बच कर आया हूँ .
वर वीर युक्त दल , सुविस्तृत है वाहिनी
रावण की क्षमता को , तोल कर आया हूँ.
सदन बने हुए हैं , पीन परकोट पर ,
परकोट पालक जो ,निशाचर रहते .
हर एक द्वार पर , काष्ठ सेतु बने हुए ,
वारि युक्त खाई पर , आच्छादित रहते.
कई-कई यंत्र वहाँ , स्वतः संचालित हैं ,
अरि और मित्र पर , तीक्ष्ण दृष्टि रखते.
यत्र-तत्र सैन्य-दल , रक्षण में लगे हुए ,
आगमन - निर्गमन , उचित परखते .
नद-नाल कई-कई , सघन है वन वहाँ ,
दुर्गम भूधर वहाँ , गमन कठिन जो .
गह्वर हैं खड्ड जहाँ , दुर्गम है घाट वहाँ ,
रवि-चन्द्र दिखे नहीं , अन्धकार राज जो.
है भूल भूलैया अति ,विभ्रम ही विभ्रम है ,
दिशा ज्ञान होता नहीं , निशाचरी तंत्र जो.
छिपे हुए निशाचर , छल करे घात करे ,
कोई नहीं बच पाए , रावण का राज जो.
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