द्वार खोल-खोल कर, साँसे थाम-थाम कर ,
बाट जोह- जोह कर ,मन को मसोसती .राम -चित्र रच कर ,पुष्प-पत्ती जड़ कर ,
खूब सोच - सोच कर ,राम को पुकारती .
सीता दिन-दिन भर ,भूखी-प्यासी रह कर ,
रोती राम - राम कर , अंगुली मरोड़ती.रावण की बगिया में,अबला अकेली हूँ जी ,
कह - कह राम जी को ,सर को वो फोड़ती.
कपि कुछ क्षण रुक , हस्त द्वय बाँध कहे ,
प्रभु जहाँ प्रमाद हो , मुझे क्षमा कीजिए .
अतल में कैद हुई , देवराज इन्द्र श्री ,
आप से ही मुक्त हुई , यश दृढ़ कीजिए .
इन्द्र पुत्र काक बन , सीता-वक्ष नोच दिया ,
अक्ष फोड़ दंड दिया , राम याद कीजिए .मर्यादा को भ्रष्ट कर , रावण तो हर कर ,
जानकी के प्राण लेगा , प्रभु कुछ कीजिए .
सीता तत्र आशा लिये , जैसे-तैसे जीती है,
लक्ष्मण सुघ्रीव सह ,राम लंका आयेंगे.
वर वीर वानर व , ऋक्ष यूथ लेकर के ,
वनवासी सैन्य दल , राम लिये आयेंगे.
राम चाप थाम कर , सायक को साध कर,
दशानन -तंत्र पूर्ण , ध्वस्त कर जायेंगे.
सीता सह लोक का भी , राघव उद्धार कर ,
मर्यादा और मूल्य में , प्राण फूँक जायेंगे.
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