Monday, 6 February 2012

द्वार खोल-खोल कर, साँसे थाम-थाम कर ,
                बाट जोह- जोह कर ,मन  को  मसोसती .
राम -चित्र रच  कर ,पुष्प-पत्ती जड़ कर  ,
                खूब सोच - सोच  कर ,राम को पुकारती .
सीता दिन-दिन भर ,भूखी-प्यासी रह कर ,
                रोती  राम - राम  कर , अंगुली मरोड़ती.
रावण  की बगिया में,अबला अकेली हूँ जी  ,
                कह - कह राम जी को ,सर को वो फोड़ती.


कपि कुछ  क्षण रुक , हस्त द्वय बाँध कहे ,
                 प्रभु जहाँ प्रमाद हो , मुझे क्षमा कीजिए .
अतल में कैद हुई , देवराज इन्द्र श्री ,
                 आप से ही मुक्त हुई , यश दृढ़ कीजिए .
इन्द्र पुत्र काक बन , सीता-वक्ष  नोच दिया ,
                 अक्ष फोड़ दंड दिया , राम याद कीजिए .
मर्यादा को भ्रष्ट कर , रावण तो हर कर , 
                  जानकी के प्राण लेगा , प्रभु कुछ कीजिए .
                  
सीता तत्र  आशा लिये , जैसे-तैसे जीती है,
                    लक्ष्मण सुघ्रीव सह ,राम लंका आयेंगे.
वर वीर वानर व , ऋक्ष यूथ  लेकर के ,
                    वनवासी सैन्य दल , राम लिये आयेंगे.
राम चाप थाम कर  , सायक को साध कर,
                    दशानन -तंत्र पूर्ण , ध्वस्त कर जायेंगे.
सीता सह लोक का भी , राघव उद्धार कर ,
                    मर्यादा और मूल्य में , प्राण फूँक जायेंगे.

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...