हनुमान आगमन , प्रसरण शीघ्र हुआ ,
मानो गंध प्रसरण , मंदिर में हो गया .
जैसे-जैसे कपि मिले , आनंद - हिल्लोर बढ़े ,
कपि का मिलन जैसे,उत्सव ही हो गया.
कपि-वृन्द फल खाते , ऋक्ष-वृन्द मधु पीते ,
जैसे कोई व्रत आज , पारायण हो गया.
हर्ष - ध्वनि सुन कर , वन-प्रांत जाग गया ,
मानो गीति काव्य का ही ,शुभारम्भ हो गया.
निशा अवसान सह , खग-कुल जाग करे ,
प्रथम किरण सह , प्रकृति रंजित है.
मंद-मंद स्वर सम , कलरव चहुँ ओर,
लगा जैसे साम गीत ,द्विज से स्वरित हैं .
चल पड़े कपि राज , लेकर के हनुमान ,
धीर-वीर सम द्वय , कुमार शोभित हैं.
राम-लक्ष्मण वंदन , सुघ्रीव कर कहते हैं ,
प्रभु! आपकी कृपा से , वज्रांग फलित हैं .
श्रद्धाबुद्धि हनुमान , सविनय कहते हैं ,
प्रभु के प्रभाव से ही , सीता मिल गयी हैं.
यम-दिशा लंक-देश , रावण-राज यत्र है ,
अशोक-वन-बंदिनी , जानकी हो गयी हैं .
भयकारी उपवन , निशाचरी तंत्र दृढ़ ,
राम विना अबला वो , निर्बल हो गयी हैं .
प्रभु से अनुज सह , उद्धार की याचना है ,
भयकारी उपवन , निशाचरी तंत्र दृढ़ ,
राम विना अबला वो , निर्बल हो गयी हैं .
प्रभु से अनुज सह , उद्धार की याचना है ,
शीघ्र मिलें यह मान , निष्प्राण हो गयी है.
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