Wednesday, 1 February 2012

हनुमान आगमन , प्रसरण शीघ्र हुआ ,
                     मानो गंध प्रसरण , मंदिर में हो गया .
जैसे-जैसे कपि मिले , आनंद - हिल्लोर बढ़े ,
                     कपि का मिलन जैसे,उत्सव ही हो गया.
कपि-वृन्द फल खाते , ऋक्ष-वृन्द मधु पीते ,
                     जैसे कोई व्रत आज , पारायण हो गया.
हर्ष - ध्वनि सुन कर , वन-प्रांत जाग गया ,
                      मानो गीति काव्य का ही ,शुभारम्भ हो गया.


निशा अवसान सह , खग-कुल जाग करे ,
                     प्रथम किरण सह , प्रकृति  रंजित है.
मंद-मंद स्वर सम , कलरव चहुँ ओर,
                     लगा जैसे साम गीत ,द्विज से स्वरित हैं .
चल पड़े कपि राज , लेकर के हनुमान ,
                     धीर-वीर सम द्वय , कुमार  शोभित हैं.
राम-लक्ष्मण वंदन , सुघ्रीव कर कहते हैं ,
                     प्रभु! आपकी कृपा से , वज्रांग फलित हैं .


श्रद्धाबुद्धि हनुमान , सविनय कहते हैं ,
                    प्रभु के प्रभाव से ही , सीता मिल गयी हैं.
यम-दिशा लंक-देश , रावण-राज यत्र है ,
                    अशोक-वन-बंदिनी , जानकी हो गयी हैं .
भयकारी उपवन , निशाचरी तंत्र दृढ़ ,
                    राम विना अबला वो , निर्बल हो गयी हैं .
प्रभु से अनुज सह , उद्धार की याचना है
                     शीघ्र मिलें यह मान , निष्प्रा हो गयी है.                 

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...