Wednesday, 15 February 2012

 जाम्बवंत कथन का , मंतव्य समझ कर ,
                        कपिराज चल दिये , राघव से मिलने .
अग्रगामी  सुग्रीव हो , पश्च हुए जाम्बवंत ,
                        हनुमान साथ लिये , संवाद को करने .
यूथपति -सेनाधिप , हो गये हैं अनुगामी ,
                       अनुभव-कौशल को , राजीव से कहने.
देखा राम-लक्ष्मण ने  , सुग्रीव सदल आये ,
                        भ्राता द्वय बढ़ गये , सुहृद से मिलने.   


सुग्रीव-लक्ष्मण सह, राम श्रृंग शोभते,
                         ऋक्ष श्रेष्ठ जाम्बवंत ,  संवाद को कहते .
प्रभु ! सैन्य दल अब , सज्जित है संगठित ,
                         यूथपति -सेनाधिप , प्रस्थान को चाहते.
अंगद-ऋषभ यहाँ ,  हनुमान -  वेगदर्शी 
                          गंधमादन - सुषेण ,  दर्शन  को  चाहते.
दो-दो हाथ रावण से , तत्पर हैं करने को  .
                          सेनापति  नील  अत्र , शुभाशीष चाहते.


सज्जन-सरल जन , आगत विरोध  चिंत ,
                          कार्य की प्रणाली में , डूबे चले जाते हैं.
संवाद को सुन कर , चिंता मग्न हुए राम ,
                          वदन गंभीर हुआ , भाव आते-जाते हैं.
आरोहित भाव हो के , पतन को चले जाते ,
                          जैसे घन उठ-उठ , नत होते जाते हैं .
सीता सह  लोकोद्धार , प्रश्न पर विचारते ,
                           जैसे अलि मधु पर , मंडराते जाते हैं .

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