जाम्बवंत कथन का , मंतव्य समझ कर ,
कपिराज चल दिये , राघव से मिलने .
अग्रगामी सुग्रीव हो , पश्च हुए जाम्बवंत ,
हनुमान साथ लिये , संवाद को करने .
यूथपति -सेनाधिप , हो गये हैं अनुगामी ,
अनुभव-कौशल को , राजीव से कहने.
देखा राम-लक्ष्मण ने , सुग्रीव सदल आये ,
भ्राता द्वय बढ़ गये , सुहृद से मिलने.
सुग्रीव-लक्ष्मण सह, राम श्रृंग शोभते,
ऋक्ष श्रेष्ठ जाम्बवंत , संवाद को कहते .
प्रभु ! सैन्य दल अब , सज्जित है संगठित ,
यूथपति -सेनाधिप , प्रस्थान को चाहते.
अंगद-ऋषभ यहाँ , हनुमान - वेगदर्शी ,
गंधमादन - सुषेण , दर्शन को चाहते.
दो-दो हाथ रावण से , तत्पर हैं करने को .
सेनापति नील अत्र , शुभाशीष चाहते.
सज्जन-सरल जन , आगत विरोध चिंत ,
कार्य की प्रणाली में , डूबे चले जाते हैं.
संवाद को सुन कर , चिंता मग्न हुए राम ,
वदन गंभीर हुआ , भाव आते-जाते हैं.
आरोहित भाव हो के , पतन को चले जाते ,
जैसे घन उठ-उठ , नत होते जाते हैं .
सीता सह लोकोद्धार , प्रश्न पर विचारते ,
जैसे अलि मधु पर , मंडराते जाते हैं .
कपिराज चल दिये , राघव से मिलने .
अग्रगामी सुग्रीव हो , पश्च हुए जाम्बवंत ,
हनुमान साथ लिये , संवाद को करने .
यूथपति -सेनाधिप , हो गये हैं अनुगामी ,
अनुभव-कौशल को , राजीव से कहने.
देखा राम-लक्ष्मण ने , सुग्रीव सदल आये ,
भ्राता द्वय बढ़ गये , सुहृद से मिलने.
सुग्रीव-लक्ष्मण सह, राम श्रृंग शोभते,
ऋक्ष श्रेष्ठ जाम्बवंत , संवाद को कहते .
प्रभु ! सैन्य दल अब , सज्जित है संगठित ,
यूथपति -सेनाधिप , प्रस्थान को चाहते.
अंगद-ऋषभ यहाँ , हनुमान - वेगदर्शी ,
गंधमादन - सुषेण , दर्शन को चाहते.
दो-दो हाथ रावण से , तत्पर हैं करने को .
सेनापति नील अत्र , शुभाशीष चाहते.
सज्जन-सरल जन , आगत विरोध चिंत ,
कार्य की प्रणाली में , डूबे चले जाते हैं.
संवाद को सुन कर , चिंता मग्न हुए राम ,
वदन गंभीर हुआ , भाव आते-जाते हैं.
आरोहित भाव हो के , पतन को चले जाते ,
जैसे घन उठ-उठ , नत होते जाते हैं .
सीता सह लोकोद्धार , प्रश्न पर विचारते ,
जैसे अलि मधु पर , मंडराते जाते हैं .
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