कवि योद्धा है,
कलम है अस्त्र ,
और-
अर्थवान शब्द - विन्यास है ,
कवि योद्धा का ,
अमोघ शस्त्र .
इतिहास साक्षी है ,
इस योद्धा की गति से ,
जिसने ,
संवेदना के धरातल पर ,
लड़े हैं कई-कई युद्ध ,
मूल्यों के अस्तित्व के लिए .
योद्धा का श्रृंगार है .
खुरदरा और कठोर ,
और सजाता है ,
स्वयं को जिरह-बख्तर से,
आग्नेयास्त्रों से ,
स्वयं को जिरह-बख्तर से,
आग्नेयास्त्रों से ,
कवि योद्धा भी रखता है -
आग्नेयास्त्र जैसे पद-विन्यास ,
अनछुए विषय -शिल्प ,
और
जिरह-बख्तर सी अर्थवत्ता.
और
जिरह-बख्तर सी अर्थवत्ता.
योद्धा की तरह देता है ,
निर्लिप्त भाव से ,
स्वशोणित आहूतियां
जैसे कोई ऋषि ,
पुनीत मंत्रोच्चार के सह
पुनीत मंत्रोच्चार के सह
यजन-कर्म में देते हैं ,
विश्व कल्याणार्थ
विश्व कल्याणार्थ
स्व उपार्जित
पदार्थों की आहूतियां .
पदार्थों की आहूतियां .
कलम उगलती है आग ,
तब ,
नहीं होता विध्वंस ,
बस होती है,
अनचाही झाड़ियों की ,
निर्मम कांट-छांट ,
और ,
स्थापित होती है ,
लहलहाती फसलें.
कवि की बोई फसलों पर ,
पलती है सभ्यता,
और पुष्ट होते है,
मानवीय मूल्य
और स्थापित होता है-
कोई सुकृत.
कवि योद्धा है ,
नहीं है नीरो ,
जो कि -
रोम के जलने पर भी,
तन्मय हो कर ,
बजाये बांसुरी ,
बल्कि ,
इसके उलट दौड़ पड़ता है,
बुझाने को आग ,
क्योंकि-
वह जीता है,
संवेदना के धरातल पर ,
संवेदना के लिए .
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