आज सुबह से ,इंतज़ार है ,
मुझे डाकिये का ,
औए उस रंगीन चिट्ठी का,
जो साल में ,
एक बार ही आती है ,
और -
बिल्कुल अलग आती है ,
जैसे श्रावणी रिमझिम बरसात .
उस चिट्ठी में ,
होती है रिश्तों की गंध ,
रक्त का बंध ,
और -
बहिन का प्यार ,
जिसे वह सजाती है ,
रंगीन अक्षरों में ,
किनारों पर किये बेल-बूटों में ,
तथा,
कभी-कभी भावुक हो कर ,
छिटक देती है , रंगीन चिट्ठी पर ,
अपनी आँखों का निर्मल जल ,
हुई है अभी -अभी ,
जैसे श्रावणी रिमझिम बरसात .
मुझे इंतज़ार है ,
उस रंगीन इन्द्रधनुषी चिट्ठी का ,
जिसमें लिपटा हुआ आता है ,
हाथ का मढ़ा हुआ ,
रेशम का धागा ,
लगता है जैसे ,बड़े यत्न से,
दिल ही बट कर ,
भेज दिया मेरे लिए ,
और -
जब मेरी कलाई पर ,
लिपटता है वह रेशम का धागा ,
तब मुझे वह धागा ,
धड़कता सा महसूस होता है ,
तब मेरी आँखें उमड़ जाती हैं ,
उमड़ आई हो ,
जैसे श्रावणी रिमझिम बरसात .
जब भी आता है श्रावणी-पर्व ,
तब मैं चला जाता हूँ ,
नदी के खुले घाट पर ,
और -
पढ़ता हूँ गायत्री ,
परन्तु सच कहता हूँ बहिन ,
मेरा मन ,
उलझा रहता है ,
तेरी रंगीन चिट्ठी में ,
बोझिल कदमों से,
भरे हुए मन के साथ ,
लौटता हूँ घर ,
तब छुटकी दौड़ कर ,
ला कर देती है तुम्हारी चिठ्ठी ,
तब-
मन में बज उठता है जल-तरंग ,
आखिर ,रक्षा-बंधन जो है,
और ,
आँख चू पड़ती है ,
जैसे श्रावणी रिमझिम बरसात .
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