सुख जो मेरे अपने हैं ,
पल जाने को व्याकुल हैं .
उड़-उड़ जाऊं ले कर पंख ,
ले कर तितली के सब रंग ,
तितली जाये बाग-बगीचे ,
मैं जाऊं हर घर की छत .
सब जो मेरे अपने हैं ,
रिश्ते उन से घनेरे हैं ,
मिल जाने को व्याकुल हैं .
बढ़-बढ़ जाऊं ले कर तृण ,
ले कर गोरैया की चाह ,
गौरैया बांधे अपना नीड़ ,
मैं जाऊं हर घर के द्वार .
सब के अपने सपने हैं ,
टूटी छत के डेरे हैं ,
घर पाने को व्याकुल हैं.
बह-बह जाऊं ले कर पानी ,
ले कर नदिया का विश्वास ,
नदिया जाये सागर पास ,
मैं जाऊं हर घर के पास.
पीड़ा सने हुए टखने हैं ,
दुःख का दलदल घेरे हैं,
सब बहने को व्याकुल हैं .
रम-रम जाऊं ले कर खेल,
ले कर बच्चे ,ले कर मेंल,
नांव तिराऊँ रेल चलाऊँ ,
अन्दर-बाहर रच दूं खेल.
सतरंगी आँगन रचने हैं,
सब आँगन जो मेरे हैं ,
सुख पाने को व्याकुल हैं .
Bahut khub Triloki bhai ji... Naman evam pranam... Aseem Kaistha
ReplyDelete