विपरीत परिस्थितियों में ,
बिठाना होता है समायोजन ,
जैसे नये-नये जूते में
बिठाना होता है अपना पैर .
नया जूता ,
हाँ बिलकुल नया
बहुत होता है कटखना ,
काटता है चिडचिडे ,
आदमी की तरह ,
लेकिन ,
क्या उसके काटने की पीड़ा
और
जलन भरे ,छालों से ,
भला कोई ,जूता पहनना ,
छोड़ देता है ?
नहीं ना ..................
तब पलायन का
कोई सवाल ही नहीं है,
और,
हमें अपने ही पैर से ,
कुछ सीख लेने में ,
भला कोई बुराई नहीं है .
जूता पैर को काटता है ,
लेकिन,
पैर लड़खड़ा कर भी ,
धीरे-धीरे जूते को ,
अन्दर ही अन्दर ,
करता चला जाता है ,
मुलायम और विस्तार ,
देने का काम .
मुलायम होने के बाद ,
वही कटखना जूता ,
कभी काटता नहीं ,
बल्कि लग जाता है ,
पैर की सुरक्षा में ,
और ,
जिन्दगी भर पैर की ,
करता है सुरक्षा ,
जैसे करता है ,
देखरेख कोई अपना .
बहुत सारी है चुनौतियां ,
जीवन के विकट रास्ते में ,
कुछ छोटी, कुछ बड़ी ,
कुछ बहुत ही भयावह ,
परन्तु ,
पैर के जूते की तरह ,
अहिस्ता-आहिस्ता ,
बनाया जा सकता है ,
उन्हें ,
आसान और पालतू .
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