शिशु भोर की प्रथम किरण ,
दस्तक देती मेरे द्वारे ,
जैसे गोपालिन आकर के ,
गोरस लिए हुए पुकारे ,
जगो कवि ! दिवस हो गया.
शीतल वायु हुई प्रवाहित ,
मेरी चादर हिला गयी है ,
मानो कोई हॉकर आ कर ,
अखबार लिए दस्तक देता ,
जगो कवि ! दिवस हो गया.
प्राची में पेड़ों के पीछे ,
लिए अरुणिमा सूर्य निकलता ,
जैसे कोई चंचल बालक ,
रंगीन गुब्बारे लिए गा रहा ,
जगो कवि ! दिवस हो गया.
घर पिछवाड़े कोयल जागी ,
कु-हू कु-हू कर कूक लगाती ,
सोती भावज ज्यों करे शरारत ,
गये स्वप्न आपाधापी आती ,
जगो कवि ! दिवस हो गया.
No comments:
Post a Comment