तुम उस पार , मैं इस पार
बांधना चाहता हूँ ,
श्वांसों की झीनी नाजुक सी वो डोर.
मुझ को हिचक है तेरी गली में ,
तुझ को हिचक है मेरी गली में ,
देखना चाहता हूँ ,
तेरी गली की सुर्ख रंगत लिए भोर .
चर्चा तुम्हारी खूब मैंने सुनी है ,
चर्चा हमारी खूब तुमने सुनी है,
मिलाना चाहता हूँ ,
कच्चे धागे के छिटके हुवे दो छोर .
सब लोग माने तुम हम से अलग हो ,
हम ने न माना तुम हम से अलग हो ,
बताना चाहता हूँ ,
सदा से बसे हो मुझ में मेरे चितचोर.
लोग हंस के मारे रोज पत्थरों से ,
महल भी चुना है उन्हीं पत्थरों से ,
दिखाना चाहता हूँ ,
दर्द से भरा मेरे महल का पोर-पोर.
तुम्हें क्या पड़ी है जो सुध लो हमारी ,
हम नित्य सजाते छवि जो तुम्हारी ,
ध्यान चाहता हूँ
घायल पंछी सा पहुंचा हूँ तेरे ही ठोर
No comments:
Post a Comment