Thursday, 11 October 2012

नव आशा से , भरता हूँ.


जितना तुम को,
याद किया है ,
उतना ही तो,
कटता हूँ .

तुम को भूलूँ ,
कैसे भूलूँ ,
इस कोशिश में ,
बंटता हूँ .

तुम में मुझ में ,
क्या अंतर है ?
लिए आईना
पढ़ता हूँ .

भरे सरोवर
में कमलों के ,
नखरों से अब ,
डरता हूँ.

तुम आओगे ,
या जाओगे ,
इन प्रश्नों से ,
लड़ता हूँ .

हंसों को घर ,
आते देखा ,
नव आशा से ,
भरता हूँ.

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