Thursday 18 October 2012

तेरा नकाब .


कितना बेमानी है ,
यह पूछना कि,
कैसे हो ?
जब कि हाथ में ,
पकड़ा हुआ चाकू ,
अभी भी पूरी तरह से
रक्त से है लाल सुर्ख .

लाने को तो लाये थे ,
ठंडा पानी ,
परन्तु ,
मेरे होठों को ,
तर करने के बजाय ,
मेरे ही चारों ओर,
बिखेर दिया ,
और ,
भीड़ में कहते हो ,
तुम्हारे लिए ,
क्या नहीं कर सकता?

सच में ,
तुम रुग्ण हो,
शवों पर करना
चाहते हो शासन ,
इसीलिए ,
सहन नहीं कर पाते,
जीवित की प्रतिक्रिया ,
और ,
हो जाते हो,
हिंसक ,
आदमखोर की तरह.

मैं घायल हूँ ,
और ,
मेरे घाव हैं ,
मेरी पहचान ,
मेरे ताजा घावों को ,
तुम कुरेद कर ,
और हरे करते हो,
मैं दर्द से ,
बिलबिलाता तो हूँ ,
पर ,
नित्य ही मेरा कारवाँ ,
बढ़ता चला जा रहा है ,
एक अच्छी खबर सुन ,
तेरा नकाब ,
अब बहुत ढीला हो रहा है .

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