ज़रा ज़रा सी बात पर बिगड़ा न कर.
आईने में शक्ल देखी बिगड़ा न कर .
हर बात पर कटखना बन काटता है .
एक चिकोटी काटी है बिगड़ा न कर.
नित कुचल कर हंसता है तू रोज ही
क्षुद्र तिनका आँख में हूँ बिगड़ा न कर.
लहू की सौगंध खा कर ताव खाता .
लहू से लहू मिल चला बिगड़ा न कर.
मेरा कांधा बहुत तुझ को रास आया .
आखिरी कांधा दे रहा बिगड़ा न कर .
रोज मुझ पर अपनी दाढ़ें गाड़ता था .
दांत मैनें भी दिखाए बिगड़ा न कर .
सब का खा कर भी डकार लेता नहीं.
तोंद की ही थाह ली है बिगड़ा न कर.
एक समय था कि परों को बीनता था
अब परिंदों के परों पर बिगड़ा न कर .
जिस घृणा से जिंदगी तू ने बिताई .
पूरा ज़माना हँस पडा बिगड़ा न कर .
इक कटोरा ले के आया मेरे लिए तू .
मैं कटोरा फेंकता हूँ बिगड़ा न कर .
हर बार मेरी किस्मतें लिखता रहा .
कल तेरा मैं लिख रहा बिगड़ा न कर .
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