बहते आंसुओं को तू पानी न मान.
देखो आया सामने सपना न मान .
झील को तू ने छुआ तो लहरें उठीं .
दिल भी वैसे कांपता सोया न मान .
आज कल चर्चा हमीं पर होती है .
यह तो होता ही रहा हर्जा न मान.
तू एक कंकर फेंक कर के देख ले.
चीख-चिंगारी होगी चुप्पी न मान .
उड़ती पतंग अपने हाथों कट चले.
बेरुखि सब मानते हैं होना न मान.
सूखे पत्तों की खडखडाहट सब तरफ .
हवा चली तो जायेंगे ये गम न मान .
क्या काजी का आना जरूरी होता है .
दिल से रिश्ता जोड़ा है जुदा न मान.
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