Thursday, 4 October 2012

बोलो , मेरे मित्र कुछ तो बोलो


कुछ लोग मिलते हैं ,
किसी लम्बे ,
पड़ाव पर .
कुछ क्षण में ही ,
आत्मीयता के बंध ,
मजबूती से बंध जाते हैं ,
जैसे लिपट जाए ,
रेंगती हुई कोई लता ,
किसी बढ़ते हुए पेड़ से .
तब क्या कहें ?
अनायास मिलन....
सौभाग्य .......
या
पूर्व जन्म का प्रारब्ध .
बोलो , मेरे मित्र कुछ तो बोलो

इसी चिंतन से ,
हाथों की पेन्सिल ,
हिलती रही ,
चलती रही ,
और ,
कुछ आकृतियाँ ,
उभरती गयी .
किसी ने कहा ,
यह चित्र है ,
किसी ने कहा ,
यह अचित्र है .
किसी ने कहा ,
यह आकृति है ,
किसी ने कहा ,
नहीं ,
यह एक विकृति है ,
मैं क्या मानूं ?
चित्र , अचित्र ,
आकृति या विकृति ?
बोलो , मेरे मित्र कुछ तो बोलो

ओह ! जब-जब तुम मिले,
जिस -जिस रूप में मिले ,
वाकई अद्भुत है .
अब तुम्हारे मिलन को
क्या कहूं -
घटना , संयोग ,
सम्बन्ध , आकर्षण
या,
पूर्व जन्म का कोई,
रिश्ता -नाता ,
या , फिर कोई ,
मनभावन समय का खेल ?
बोलो , मेरे मित्र कुछ तो बोलो .

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