Saturday 2 February 2013

सरस बसंती हवा बही है .


सरस बसंती हवा बही है .
स्मृतियों की नदी बही है.

गेहूं के खेतों में,
सुरभि की तरह ,
बहते हुए ,
तुम्हारा चले आना .
गेहूं के सुकोमल ,
नन्हें-नन्हें हरे ,
पन्नग से पौधों में ,
तुम्हारा पानी रलकाते गाना -

पीली सरसों साथ उगी है.
सरस बसंती हवा बही है .

अंतर के मधुर स्वप्न ,
बिखर कर ,
जब भी छू मंतर हो जाते ,
मेरा मुख म्लान हो जाता ,
तब मेरा ध्यान ,
अपनी और खींचने के लिए ,
मचान के ऊपर चढ़ ,
तुम्हारा जोर से पुकार उठना -

देखो अलसी खूब फली है .
सरस बसंती हवा बही है .

सब के साथ
दौड़ की होड़ में ,
जब-जब थक कर ,
मैं चूर-चूर हुआ ,
तब मेरे निश्चेष्ट पड़े ,
तन-मन में ,
प्राणों का स्पंदन ,
मधुर स्वर से कर दिया -

धानी चूनर खूब सजी है .
सरस बसंती हवा बही है .

किस तरह से मैं ,
तुम्हारे प्रति ,
अपना अनुग्रह ,
व्यक्त कर सकता हूँ ,
मेरे जीवन पथ के ,
हर ऊंचे-नीचे पथ में ,
तुम्हार चरण-चिह्न ,
स्पष्ट देख कह सकता हूँ -

मेरी भी आँखे खूब भरी हैं .
सरस बसंती हवा बही है .


   - त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.

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