आशाओं पर सब पलते हैं .
तप के ही अंकुवे निकले हैं .
मांझी सोचे ,
किश्ती लेकर .
घर आऊँगा ,
खुशियाँ लेकर .
कौन कहे वह ,
घर को आये .
कौन कहे वह ,
सागर बस जाए .
लहरों पर मांझी चलते हैं.
छोटी किश्ती पे मचले हैं.
वो दीवाने ,
तट आते हैं.
लहर पीट के ,
घर भरते हैं.
रात कटी है ,
अपने ले कर .
भोर चले फिर,
सपने ले कर .
झंझा पर सपने बसते हैं.
अग्नि पे चुम्बन उगते हैं.
कल उन का भी ,
घर होगा .
घर में किस का ,
डर होगा .
गर्म तवे से ,
गंध उठेगी .
मृदुल भुजाएं ,
अंक कसेगी.
आशाओं पर घर चलते हैं .
पतझड़ पर बसंत फलते हैं .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
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