Saturday, 9 February 2013

कहे चेतना , दिल से सुन .


कुछ कहता हूँ , उस को सुन .
दिल की बातें , दिल से सुन .

कागज़ की नौका,
जल की धार.
मिट्टी का माधो
लिये पतवार.

आँख से देख , ठीक से सुन .
धारा का वेग , दिल से सुन .

नौका तिरती  ,
धारा-अनुकूल .
नौका डूबती ,
धारा-प्रतिकूल .

सुप्त चेतनता ,जागे तो सुन .
क्षण भी बोले , दिल से सुन .

अनुभव-अनुभव ,
अपनी ही पूँजी .
दिव्य चेतना ,
सब में ही कुंजी.

हाथ बोलते , क्षण से सुन .
कहे चेतना , दिल से सुन .

                     - त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.

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