कुछ कहता हूँ , उस को सुन .
दिल की बातें , दिल से सुन .
कागज़ की नौका,
जल की धार.
मिट्टी का माधो
लिये पतवार.
आँख से देख , ठीक से सुन .
धारा का वेग , दिल से सुन .
नौका तिरती ,
धारा-अनुकूल .
नौका डूबती ,
धारा-प्रतिकूल .
सुप्त चेतनता ,जागे तो सुन .
क्षण भी बोले , दिल से सुन .
अनुभव-अनुभव ,
अपनी ही पूँजी .
दिव्य चेतना ,
सब में ही कुंजी.
हाथ बोलते , क्षण से सुन .
कहे चेतना , दिल से सुन .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
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