अनकही हर बात
पढ़ लेती मेरी आँख
मात्र यही है एक संदर्भ
नित्य कटता जा रहा हूँ।
घुटती हुई हर सांस
रोकती मेरी सांस
मात्र यही है एक आधार
नित्य जलता जा रहा हूँ।
मेरे ह्रदय में
एक मीठा ताल
मात्र यही है एक कारण
नित्य मरता जा रहा हूँ।
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद (राज)
पढ़ लेती मेरी आँख
मात्र यही है एक संदर्भ
नित्य कटता जा रहा हूँ।
घुटती हुई हर सांस
रोकती मेरी सांस
मात्र यही है एक आधार
नित्य जलता जा रहा हूँ।
मेरे ह्रदय में
एक मीठा ताल
मात्र यही है एक कारण
नित्य मरता जा रहा हूँ।
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद (राज)