जिनको भ्रम में जीना है
वे निश्चित भ्रम में जिये
भ्रम उनके लिए हवा पानी
और भोजन सा
बहुत ही आवश्यक
वे भ्रम में चलते हैं
वे भ्रम में बढ़ते हैं
वे भ्रम में सोते हैं
वे भ्रम में ही
सारी चर्या करते हैं
बस, भ्रम में नहीं जागते
उनके पीछे विलाप
व्यर्थ करना होता है
वे भ्रम में नहीं जागते
वे भ्रम में मारे जाते।
वे निश्चित भ्रम में जिये
भ्रम उनके लिए हवा पानी
और भोजन सा
बहुत ही आवश्यक
वे भ्रम में चलते हैं
वे भ्रम में बढ़ते हैं
वे भ्रम में सोते हैं
वे भ्रम में ही
सारी चर्या करते हैं
बस, भ्रम में नहीं जागते
उनके पीछे विलाप
व्यर्थ करना होता है
वे भ्रम में नहीं जागते
वे भ्रम में मारे जाते।
कुछ भी बोलो
भ्रम का भी अपना साम्राज्य
भ्रम का भी अपना सुख
भ्रम में वे ही राजा
भ्रम में वे ही प्रजा
भ्रम में वे ही परमात्म
भ्रम में वे ही जीव
भ्रम में वे ही कारक
भ्रम में वे ही उद्धारक ।
भ्रम का भी अपना साम्राज्य
भ्रम का भी अपना सुख
भ्रम में वे ही राजा
भ्रम में वे ही प्रजा
भ्रम में वे ही परमात्म
भ्रम में वे ही जीव
भ्रम में वे ही कारक
भ्रम में वे ही उद्धारक ।
जब समय का चक्र घूम-घूम कर
उनके पीछे थक जाता
भ्रम है कि नहीं छोड़ता पीछा
लंबी होती हुई छांव सा
समय झल्ला कर
खींच लेता अपने हाथ
इसीके साथ भ्रम में डूबे जन
डूब जाते गहन श्यामल तमस में
हो जाते हैं कैद
काजल सी काली कोठरियों में
जहां समय नहीं देता फिर कभी
संभलने का अवसर।
उनके पीछे थक जाता
भ्रम है कि नहीं छोड़ता पीछा
लंबी होती हुई छांव सा
समय झल्ला कर
खींच लेता अपने हाथ
इसीके साथ भ्रम में डूबे जन
डूब जाते गहन श्यामल तमस में
हो जाते हैं कैद
काजल सी काली कोठरियों में
जहां समय नहीं देता फिर कभी
संभलने का अवसर।
भ्रम जहर सा किसी डरावने काल के
प्रतिनिधि सा
किसी भयंकर अजगर सा
भ्रम में डूबे जन को
निगल जाने को आतुर..............................
मुझे खेद है -
कुछ लोग भ्रम से बाहर नहीं निकलते
क्योंकि वे भ्रम में नीतिनियंता
हम उनके भ्रम में पालक से
वे भ्रम में बहरे
वे भ्रम में अंधे
वे भ्रम में शून्य
नहीं अनुभव कर पाते
तरल समय को
जिसने भ्रम में भरमाए जन के
कर्मों से बहियाँ रंग दी ।
प्रतिनिधि सा
किसी भयंकर अजगर सा
भ्रम में डूबे जन को
निगल जाने को आतुर..............................
मुझे खेद है -
कुछ लोग भ्रम से बाहर नहीं निकलते
क्योंकि वे भ्रम में नीतिनियंता
हम उनके भ्रम में पालक से
वे भ्रम में बहरे
वे भ्रम में अंधे
वे भ्रम में शून्य
नहीं अनुभव कर पाते
तरल समय को
जिसने भ्रम में भरमाए जन के
कर्मों से बहियाँ रंग दी ।
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद॰ (राज॰)
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