चिन्गारी की सीमा
असीम
उसमें दीपक की
लौ
उसमें चूल्हे की
अग्नि
उसमें अनुष्ठानों की
ज्वाला
उसमें क्रान्ति की
मशाल
उसमें वन की
दावाग्नि
उसमें सूरज की
सूक्ष्म ऊर्जा
उसमें प्राण, उसमें गति,
उसमें लय करने की क्षमता
लघु मानना
उपेक्षा करना
बहुत बड़ी है भूल,
चिन्गारी को जानें-समझें
वह अनुभव होती,
कभी वाणी से, कभी दृष्टि से
कभी गहरे मोन के
ठंडे सागर से,
वह आती-जाती
कहीं हमारे मध्य।
असीम
उसमें दीपक की
लौ
उसमें चूल्हे की
अग्नि
उसमें अनुष्ठानों की
ज्वाला
उसमें क्रान्ति की
मशाल
उसमें वन की
दावाग्नि
उसमें सूरज की
सूक्ष्म ऊर्जा
उसमें प्राण, उसमें गति,
उसमें लय करने की क्षमता
लघु मानना
उपेक्षा करना
बहुत बड़ी है भूल,
चिन्गारी को जानें-समझें
वह अनुभव होती,
कभी वाणी से, कभी दृष्टि से
कभी गहरे मोन के
ठंडे सागर से,
वह आती-जाती
कहीं हमारे मध्य।
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद।
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