Saturday, 29 November 2014

मेरे ह्रदय में एक मीठा ताल

अनकही हर बात
पढ़ लेती मेरी आँख
मात्र यही है एक संदर्भ
नित्य कटता जा रहा हूँ।

घुटती हुई हर सांस
रोकती मेरी सांस
मात्र यही है एक आधार
नित्य जलता जा रहा हूँ।

मेरे ह्रदय में
एक मीठा ताल
मात्र यही है एक कारण
नित्य मरता जा रहा हूँ।

-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमंद (राज) 

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