Tuesday, 31 January 2012

सुग्रीव संतुष्ट हो के , सभासद को कहते ,
                    सीता शोध योजना में ,शीघ्र लगना होगा.
लोक की व्यथा से राम , भली भांति विज्ञ अत्र ,
                    सैन्य-संघठन अभी , शीघ्र करना  होगा.
अन्नागार -शस्त्रागार , पूर्ण करें आप अब ,
                    साधन - वाहन हमें , शीघ्र  साधना होगा.
दिशा-दशा देश-काल , चाहे कोई कैसा भी हो ?
                    मित्रों ! रामाज्ञानुसार , शीघ्र बढ़ना होगा.


चिंतामग्न हो कर के , सभासद  चल दिये ,
                     डग  मग  नापते हैं  , मन निर्विकल्प है .
हनुमान आये नहीं , चिन्तना अनेक होती ,
                     अग्र गामी कैसे होगा ,शेष जो प्रकल्प है.
सीता शोध हो गया है , प्रतिष्ठा का प्रश्न अब ,
                     सीता मात्र हल होगा , किया जो संकल्प है.
तभी चर मिल कर , कपि आगमन कहे ,
                      हर्ष सह दौड़ गये ,  यही तो विकल्प  है.                                         
सागर को पार कर , श्रृंग पे उतर कर ,
                   किलकारी कपि कर , हुंकारी को करता.
हनुमान किलकारी , सुन कर वीर-वृन्द ,
                   सीता शोध मान कर ,उल्लास वो भरता.
राज राजा सुग्रीव जो , सुनते हैं कपि आया,
                   हर्ष  सह  वानर से , अंक  भेंट करता.
वानर विनय सह , सीता शोध कह कर ,
                   दशग्रीव स्वेच्छाचार , दुर्ग-दहन कहता . 

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