तुम ने कभी सोचा भी है ,
जो है तुम्हारी ,
आत्मा का अंश ,
वह कितना ,
जी पा रहा है ,
या ,
जीने के लिए ,
करा रहा है जद्दोजहद .
जिन को सौंप दिया है ,
तुम ने अपने उद्यान का ,
महकता पुष्प ,
उन के साय में ,
वह खिलता है ,
या ,
खिलने के लिए ,
हाथ-पैर मार रहा है ?
तुम अव्वल दर्जे के,
गैरजिम्मेदार माली हो ,
जिस ने अपने खिलते ,
पुष्पों की सुध नहीं ली ,
जब भी मुर्झाता है पुष्प ,
अच्छे से समझ,
ओ ! नासमझ माली ,
तेरे उद्यान पर ,
मंडरा रहा है काला साया .
तू चाहता है ,
तेरा उद्यान खिले ,
और ,
तेरे पुष्पित पुष्पों से ,
और भी उद्यान पुष्पित होते रहे ,
तब ,
तुझे सही समय पर ,
अपनी प्रतिक्रिया ,
काले साय के खिलाफ,
दर्ज करनी होगी ,
यह समझदारी है .
तेरे पुष्प सृजन के सहकारी हैं ,
निर्दय विप्लव के ,
लाचार लक्ष्य नहीं .
यह है एक प्रच्छन्न लड़ाई ,
जिसे समय रहते लड़ ,
अपने लिए ना सही ,
सृजन के लिए ही सही ,
पर लड़ .
छोड़ ना , सभ्यता का लबादा ,
फ़ेंक यह बोझा ,
और ,
मूल्यों के लिए खडा हो जा ,
वर्ना तेरे ही उद्यान के पुष्प ,
तेरे माली होने के वजूद पर ,
प्रश्न चिह्न लगायेंगे ,
फिर तेरे पास पश्चाताप के सिवाय ,
नहीं रहेगा कोई विकल्प .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.
जो है तुम्हारी ,
आत्मा का अंश ,
वह कितना ,
जी पा रहा है ,
या ,
जीने के लिए ,
करा रहा है जद्दोजहद .
जिन को सौंप दिया है ,
तुम ने अपने उद्यान का ,
महकता पुष्प ,
उन के साय में ,
वह खिलता है ,
या ,
खिलने के लिए ,
हाथ-पैर मार रहा है ?
तुम अव्वल दर्जे के,
गैरजिम्मेदार माली हो ,
जिस ने अपने खिलते ,
पुष्पों की सुध नहीं ली ,
जब भी मुर्झाता है पुष्प ,
अच्छे से समझ,
ओ ! नासमझ माली ,
तेरे उद्यान पर ,
मंडरा रहा है काला साया .
तू चाहता है ,
तेरा उद्यान खिले ,
और ,
तेरे पुष्पित पुष्पों से ,
और भी उद्यान पुष्पित होते रहे ,
तब ,
तुझे सही समय पर ,
अपनी प्रतिक्रिया ,
काले साय के खिलाफ,
दर्ज करनी होगी ,
यह समझदारी है .
तेरे पुष्प सृजन के सहकारी हैं ,
निर्दय विप्लव के ,
लाचार लक्ष्य नहीं .
यह है एक प्रच्छन्न लड़ाई ,
जिसे समय रहते लड़ ,
अपने लिए ना सही ,
सृजन के लिए ही सही ,
पर लड़ .
छोड़ ना , सभ्यता का लबादा ,
फ़ेंक यह बोझा ,
और ,
मूल्यों के लिए खडा हो जा ,
वर्ना तेरे ही उद्यान के पुष्प ,
तेरे माली होने के वजूद पर ,
प्रश्न चिह्न लगायेंगे ,
फिर तेरे पास पश्चाताप के सिवाय ,
नहीं रहेगा कोई विकल्प .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द.