मैने आज पढ़ा -
ईरान में लड़कियां ,
बुर्के में रहती है ,
वे लडकियां ,
बुर्के में ही करती है नौकरी ,
बुर्के में ही जाती है पढ़ने ,
और ,
हद तो तब हो गयी ,
वे नाटक के मंचन में ,
अमरीकी लड़की का अभिनय भी ,
करती है बुर्के में ,
वे अपने-अपने घरों में ,
किस तरह रहती ,
मैं नहीं जानता ,
क्योंकि ,
इस सम्बन्ध में " असगर वजाहत " भी ,
पूरी तरह नहीं जानते.
मेरे इस कथन पर ,
शायद बहुत खुश होंगे ,
चलो हमारे हिन्दुस्तान में ,
हमारी लड़कियां ,
कितना खुलापन लिए जीती है ,
परन्तु ,
यह कितना सच है ,
इस का प्रमाणन करने के लिए ,
तुम्हारे घरों में ,
बेटियों का होना जरूरी है ,
तभी मालूम चलेगा ,
तुम्हारी हिन्दुस्तानी लड़कियां ,
किस तरह झूल रही है ,
तथाकथित आधुनिकता
और दकियानूसीपन के झूले में ,
जहां सवार है ,
उस के सर पर ,
अपनी ही जात का दोगलापन ,
जिस में जीने के जद्दोजहद में ,
मरने की दुखद इच्छा पालने को ,
हो जाती है प्रतिबद्ध .
मैं यह अच्छे से जानता हूँ ,
ईरान की लड़कियां भी ,
हमारी लड़कियों जैसी ही ,
हमारी लड़कियां है ,
वे बंधनों से मुक्त होनी ही चाहिए ,
लेकिन ,
एक बात बहुत साफ है ,
वे हमारी लड़कियों की तरह ही ,
अपनी ही जात से ,
दोहरी मार से मर नहीं रही है ,
तथाकथित आधुनिकता और
दकियानूसी के झूले में
झूल नहीं रही है .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.
ईरान में लड़कियां ,
बुर्के में रहती है ,
वे लडकियां ,
बुर्के में ही करती है नौकरी ,
बुर्के में ही जाती है पढ़ने ,
और ,
हद तो तब हो गयी ,
वे नाटक के मंचन में ,
अमरीकी लड़की का अभिनय भी ,
करती है बुर्के में ,
वे अपने-अपने घरों में ,
किस तरह रहती ,
मैं नहीं जानता ,
क्योंकि ,
इस सम्बन्ध में " असगर वजाहत " भी ,
पूरी तरह नहीं जानते.
मेरे इस कथन पर ,
शायद बहुत खुश होंगे ,
चलो हमारे हिन्दुस्तान में ,
हमारी लड़कियां ,
कितना खुलापन लिए जीती है ,
परन्तु ,
यह कितना सच है ,
इस का प्रमाणन करने के लिए ,
तुम्हारे घरों में ,
बेटियों का होना जरूरी है ,
तभी मालूम चलेगा ,
तुम्हारी हिन्दुस्तानी लड़कियां ,
किस तरह झूल रही है ,
तथाकथित आधुनिकता
और दकियानूसीपन के झूले में ,
जहां सवार है ,
उस के सर पर ,
अपनी ही जात का दोगलापन ,
जिस में जीने के जद्दोजहद में ,
मरने की दुखद इच्छा पालने को ,
हो जाती है प्रतिबद्ध .
मैं यह अच्छे से जानता हूँ ,
ईरान की लड़कियां भी ,
हमारी लड़कियों जैसी ही ,
हमारी लड़कियां है ,
वे बंधनों से मुक्त होनी ही चाहिए ,
लेकिन ,
एक बात बहुत साफ है ,
वे हमारी लड़कियों की तरह ही ,
अपनी ही जात से ,
दोहरी मार से मर नहीं रही है ,
तथाकथित आधुनिकता और
दकियानूसी के झूले में
झूल नहीं रही है .
- त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.
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