घर-घर भारी धूम मची है , फागुन आया है .
लोग अटारी चढ़ चिल्लाये , लालन आया है .
नन्द हवेली थाली बजती ,
गली-गली में चंग .
ललना गाती मधुर बधाई ,
ले डफली का संग .
नन्द-यशोदा मोदक लाओ , राजन आया है .
लोग अटारी चढ़ चिल्लाये , लालन आया है .
रसिया सरसे मधुर कंठ से,
बरसे रंग हजार .
गाली पर गाली चलती है ,
मस्ती हुई अपार .
राधा से मिलने को कान्हा , कानन आया है .
लोग अटारी चढ़ चिल्लाये , लालन आया है .
फागुन तो फागुन है राजा,
राधा हुई निहाल .
जो लाला पिचकारी मारी ,
बेचारी हुई बेहाल .
बाहों में भर राधा को बोले , फागुन आया है .
लोग अटारी चढ़ चिल्लाये , लालन आया है .
हल्दी केसर रंग घुलाये ,
घर-घर डोल भरे हैं.
नाचे रति सी राधा प्यारी,
कान्ह मृदंग धरे हैं.
नटखट कान्हा राधा के ही , कारण आया है .
लोग अटारी चढ़ चिल्लाये , लालन आया है .
रंगों की इस बारिस ने ,
सब भेद भुलाये हैं .
नेह भरे इस फागुन ने ,
सब दिल मिलाये हैं .
संत्रासों की इस दुनिया में , तारण आया है .
लोग अटारी चढ़ चिल्लाये , लालन आया है .
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित , राजसमन्द.
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