Thursday, 21 March 2013

थोड़ा-थोड़ा सा.

उलझे प्रश्नों को सुलझा लें थोड़ा-थोड़ा सा .
फागुन आया रंग उड़ा दें थोड़ा - थोड़ा सा .

अंतरवेदन से है बोझिल जीवन खाली सा.
बहुत जरूरी हल्का हो लें थोड़ा - थोड़ा सा .

सारा वन भी सुर्ख हुआ है तेरे आनन सा.
रंग गुलाबी दिल का घोलें थोड़ा-थोड़ा सा.

जीवन को जाना जाता है भारी पाठों सा.
सरगम में गा लेते जीवन थोड़ा-थोड़ा सा.

पंख लगाये समय दौड़ता ये परदेशी सा .
आपस में हम रंगे जायें थोड़ा-थोड़ा सा.

किसे पड़ी है कौन देखता जग है भूला सा.
छिड़को दिल का रंगी पानी थोड़ा-थोड़ा सा.

फागुन है सब मौसम में ये मान-मनौवल सा.
कुछ बचपन ही फिर से जी लें थोड़ा-थोड़ा सा.

      -त्रिलोकी मोहन पुरोहित, राजसमन्द .

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