Monday, 9 January 2012


आप जैसे शासक से , उचित अपेक्षा यही ,
                        दंड जो भी देना चाहें , वानर  को   दीजिए .
निजता की  तुष्टि हेतु , अहंकार पुष्टि हेतु ,
                        शासन की थामी वल्गा,शीघ्र मुक्त मानिए .
श्रुति रुद्ध दृष्टि बद्ध , जहाँ तंत्र बनता है ,
                        वहाँ अंध  कूप  में  ही , मूल्य गये  जानिए .
मूल्यों की प्रतिष्ठा हेतु , राम दस्तक देते हैं ,
                         मूल्य हन्ता रक्ष - तंत्र , अब  नष्ट  मानिए .


सुनो-सुनो लंक-वासी , कपि अति बुद्धिमान ,
                         हमें मूल्य हन्ता कहे ,पालक तो राम है .
हमें स्वत्व हर्ता कहे,श्रुति-दृष्टि रुद्ध कहे,
                         श्रुति-दृष्टि से सम्पन्न,विचारक राम है .
सत्ता और शासन में , हमें भ्रष्ट मानता है ,
                         हम लोक विरोधी हैं ,नायक तो राम है .
दशग्रीव चीखता है, जातुधान ! मारो कपि,
                         हमें दास कहता है , मात्र राजा राम है .


रक्ष-वृन्द दौड़ पड़ा , रावण के बोलते ही,
                         मानो श्याम घन फैले , पवन प्रवाह से .
चहुँ ओर श्याम काय , मध्य स्वर्ण काय कपि ,
                         मंडराती मक्षिका ज्यों,सौरभ प्रभाव से.
एक -एक जातुधान , बढ़ता है कपि ओर ,
                         मानो सिद्धि चाहता है ,एक ही प्रहार से .
मित्र सह विभीषण , शीघ्र ही पहुँच कर ,
                         निवेदन  करते  हैं , अनेक  प्रकार  से .

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