आप जैसे शासक से , उचित अपेक्षा यही ,
दंड जो भी देना चाहें , वानर को दीजिए .
निजता की तुष्टि हेतु , अहंकार पुष्टि हेतु ,
शासन की थामी वल्गा,शीघ्र मुक्त मानिए .
श्रुति रुद्ध दृष्टि बद्ध , जहाँ तंत्र बनता है ,
वहाँ अंध कूप में ही , मूल्य गये जानिए .
मूल्यों की प्रतिष्ठा हेतु , राम दस्तक देते हैं ,
मूल्य हन्ता रक्ष - तंत्र , अब नष्ट मानिए .
सुनो-सुनो लंक-वासी , कपि अति बुद्धिमान ,
हमें मूल्य हन्ता कहे ,पालक तो राम है .
हमें स्वत्व हर्ता कहे,श्रुति-दृष्टि रुद्ध कहे,
श्रुति-दृष्टि से सम्पन्न,विचारक राम है .
सत्ता और शासन में , हमें भ्रष्ट मानता है ,
हम लोक विरोधी हैं ,नायक तो राम है .
दशग्रीव चीखता है, जातुधान ! मारो कपि,
हमें दास कहता है , मात्र राजा राम है .
रक्ष-वृन्द दौड़ पड़ा , रावण के बोलते ही,
मानो श्याम घन फैले , पवन प्रवाह से .
चहुँ ओर श्याम काय , मध्य स्वर्ण काय कपि ,
मंडराती मक्षिका ज्यों,सौरभ प्रभाव से.
एक -एक जातुधान , बढ़ता है कपि ओर ,
मानो सिद्धि चाहता है ,एक ही प्रहार से .
मित्र सह विभीषण , शीघ्र ही पहुँच कर ,
निवेदन करते हैं , अनेक प्रकार से .
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