वानर सन्देश ले के , कहता विनत हो के ,
सुनो महतारी आप , प्रकृति स्वरूपा हैं .
राम सह लोक खड़ा , मुक्ति को वो चाहता,
सीता मात्र नारी नहीं ,सीता मुक्ति रूपा हैं.
शोषण-दमन और , दुराचरण-ध्वंश में,
विश्व वंदनीया सीता , शुचि शक्ति रूपा हैं.
आप के उद्धार सह , लोक का उद्धार तय ,
अब आज्ञा चाहता हूँ , आप धृति रूपा हैं.
सजल वो नेत्र लिये , वानर को कहती है ,
सजल वो नेत्र लिये , वानर को कहती है ,
समझ में आता नहीं , स्वजन क्यों जाता है?
गमन उचित वत्स , मुझ को प्रतीक्षा होगी, कहते ही जानकी का ,कंठ रुक जाता है.
वानर ने अब देखा , सीता वर मुद्रा लिये ,
विनत वो होकर के , श्रृंग चढ़ जाता है.
घोर गर्जन कर , नभचारी होता है ,
मानो सुतपि के प्राण , नभ चढ़ा जाता है.
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