राघव अनुज कर , ग्रह कर कहते हैं ,
सखा आप सुग्रीव को , बूझ नहीं पाये हो .जिस त्रास में हैं हम , कपिराज भोग चुके ,
व्रण उनके गंभीर , देख नहीं पाये हो .
वे तो राजराजा यहाँ , दायित्व गंभीर यहाँ ,
नव तंत्र होने से ही , मिल नहीं पाये हों .
हम हैं अतिथि यहाँ , सादर व्यवस्था दी है ,
सीता शोध को लेकर , सो ही नहीं पाये हों .
सीता शोध को लेकर , सो ही नहीं पाये हों .
अश्रु ले अनुज कहे , क्षमा करें लक्ष्मण को ,
राम सम अन्य नहीं , राम सम राम हैं .
राम आप अगाध हैं , थाह नहीं मिलती है,
लक्ष्मण की पाठशाला , पाठ अभिराम हैं.
उद्धत स्वभावगत , आप सम धीर नहीं ,
लक्ष्मण तो दौड़-धूप , आप तो विश्राम हैं.
प्रभु ! सीता शोध हेतु , श्लथ भाव खलता है,
सीता कैसे जी पाएगी ? सीताप्राण राम हैं.
अनुज यह कह के , रामपद ग्रहते हैं ,
राम उन्हें रोकते हैं , ऐसा नहीं कीजिए .
लक्ष्मण आप भ्राता हैं , सखा भी हैं भरत सम ,
संकट में सहभागी , उर लग जाइए .
ऋणी हम आपके हैं , करणीय बताते हैं ,
कल सीता शोध हेतु , सुग्रीव बुलाइए .
निशा अब गहराई , श्रम परिहार करो ,
रुदन का त्याग कर , अंक लग जाइए .
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