Saturday, 14 January 2012

सोचते हैं हनुमान , अद्य प्रभु सहायक ,
                उचित समय मित्र , विभीषण आये हैं .
हटबुद्धि रावण जो , सुनता किसी की नहीं ,
                अनुज कथन माना , शारदा सहाये हैं .
शारदा ने कर दिया , रावण को मतिभ्रम ,
                फलतः पुच्छ - दाह , उत्सव मनाये हैं.
शक्ति सह गणपति , हरि-हर साक्षी होंगे ,
                अष्ट - सिद्धिं गुरु रवि , सफल कराये हैं . 


लंका नगरी में अब , ढम-ढम ढोल बजे ,
                प्रचारक  कहते  हैं , अद्य  उत्सव  होगा .
राज्यादेश सब हेतु , सब ही पालन करें ,
                रक्ष-अरि की सवारी , दृश्य रुचिर होगा .
ले के आओ घृत-तेल , लीर-चीर वस्त्र को ,
                राज अवकाश जानो , गुरु रंजन  होगा .
नगर में कपि फेर , पुच्छ-दाह पूर्ण होगा ,
                पुच्छ-दाह देख अरि , सदा विमुख होगा.


आदेश के सह रक्ष , जुट गए उत्सव में ,
                सदन  पहुँच  कर , सजते-सजाते  हैं .
घृत-तेल ले कर के , लीर-चीर वस्त्र ले के ,
                मधुशाला जा कर के,पीते हैं पिलाते हैं .
वधशाला पहुँचते , आमिष की प्रियता में ,
                पुच्छ-दाह उत्सव को ,सुनते-सुनाते हैं.
स्वर्ण दुर्ग पहुँच कर , वानर की पुच्छ खींच ,
                वस्त्र-तेल लपेट के , चीखते-चिल्लाते हैं .

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