स्वामी ! कपि मारे नहीं , यह राजदूत यहाँ ,
राजदूत का हनन , नहीं अनुकूल है.
सुदंड ऐसा दीजिए , नित्य ही स्मरण करे ,
सर्व दिशा सध जाए,जो भी प्रतिकूल है.
कपि काष्ठ -पुत्तलिका , संचालक राम है ,
कपि-स्वामी अत्र आये,नीति अनुरूप है.
विभीषण-मित्र बोले , प्रभु ! यह उचित है,
मुख्य अरि-बंधन की , रीति ही अनूप है.
साधुवाद विभीषण ,लंकेश का आप को है .
अंग-भंग उचित है ,और तो युक्ति नहीं .
कपि मात्र साधन है , लक्ष्य अब अन्य है ,
लंका - विचलन हेतु , मूल में कपि नहीं .
जब तक हस्तगत , राम नहीं होते हैं ,
तब तक विवाद से ,लंका की मुक्ति नहीं.
राम का ही नाम लेके, हमें धमकाता कपि .
न रहेगा बाँस ही तो , बंसी बजेगी नहीं.
सुनो-सुनो विभीषण , कपि पुच्छ विलक्षण ,
वह्नि युक्त पुच्छ करो, दौड़ा -दौड़ा जाएगा.
पुच्छ हीन कपि जब , व्यथा राम से कहेगा ,
कपि दशा देख राम , जला - भुना आएगा.
चलो सब मिल कर , कपि पुच्छ दाह करो ,
पुच्छ -दाह उत्सव से , खूब मजा आएगा.
दशग्रीव बोलते ही , निशाचर कह पड़े ,
जाओ-जाओ सब कोई , वस्त्र - नेह लाएगा .
राजदूत का हनन , नहीं अनुकूल है.
सुदंड ऐसा दीजिए , नित्य ही स्मरण करे ,
सर्व दिशा सध जाए,जो भी प्रतिकूल है.
कपि काष्ठ -पुत्तलिका , संचालक राम है ,
कपि-स्वामी अत्र आये,नीति अनुरूप है.
विभीषण-मित्र बोले , प्रभु ! यह उचित है,
मुख्य अरि-बंधन की , रीति ही अनूप है.
साधुवाद विभीषण ,लंकेश का आप को है .
अंग-भंग उचित है ,और तो युक्ति नहीं .
कपि मात्र साधन है , लक्ष्य अब अन्य है ,
लंका - विचलन हेतु , मूल में कपि नहीं .
जब तक हस्तगत , राम नहीं होते हैं ,
तब तक विवाद से ,लंका की मुक्ति नहीं.
राम का ही नाम लेके, हमें धमकाता कपि .
न रहेगा बाँस ही तो , बंसी बजेगी नहीं.
सुनो-सुनो विभीषण , कपि पुच्छ विलक्षण ,
वह्नि युक्त पुच्छ करो, दौड़ा -दौड़ा जाएगा.
पुच्छ हीन कपि जब , व्यथा राम से कहेगा ,
कपि दशा देख राम , जला - भुना आएगा.
चलो सब मिल कर , कपि पुच्छ दाह करो ,
पुच्छ -दाह उत्सव से , खूब मजा आएगा.
दशग्रीव बोलते ही , निशाचर कह पड़े ,
जाओ-जाओ सब कोई , वस्त्र - नेह लाएगा .
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