कपि शीघ्र चढ़ कर , मंदिर के शीर्ष बैठा ,
धू - धू कर वस्त्र - ढेर , धधक के जलता .
अनल की ज्वाल पा के , अनिल चंचल हुआ ,
पुच्छ जली या ना जली , पर दुर्ग दहता .
अनल को क्रुद्ध देख , जातुधान भाग चले ,
सब ओर "त्राहि-त्राहि ",मात्र स्वर भरता .
मंदिर से मंदिर को , चला जाता वानर है ,
अनल और धूम्र से ही ,लंका नगरी भरता.
अब कपि रोद्र रूप , जहाँ-तहाँ दिखता,
अनल लगाता चले , राम जयघोष में .
पदाघात कर-कर ,सदन ढहाता जाए,
कुंजर प्रवेश करे , मानों कंज-कोष में .
छिप जाते लंकवासी , देख-देख हनुमान ,
छिपते हैं लवा मानो ,द्विजराज-कोप में.
जातुधान मारे जाते , वानर-हुंकार से ,
मरते शशक मानो , केसरी के घोष में .
जातुधान रमणियाँ , भयभीत बिलखती ,
हाय !मैया करती वो , अश्रु ढुलकाती हैं .
भयंकर ज्वाल देख , भैरव रूप कपि देख ,
ओह !तात कहती वो,संज्ञा-हीन होती हैं .
भीषण विस्फोट होते , सदन के ढूह होते,
पविकर्ण होती जाती , गर्भ खिसकाती हैं.
वह्नि फूँकते कपि को , महाकाल सम देख ,
हृदय दबाती हुई , वहीँ प्राण खोती हैं .
धू - धू कर वस्त्र - ढेर , धधक के जलता .
अनल की ज्वाल पा के , अनिल चंचल हुआ ,
पुच्छ जली या ना जली , पर दुर्ग दहता .
अनल को क्रुद्ध देख , जातुधान भाग चले ,
सब ओर "त्राहि-त्राहि ",मात्र स्वर भरता .
मंदिर से मंदिर को , चला जाता वानर है ,
अनल और धूम्र से ही ,लंका नगरी भरता.
अब कपि रोद्र रूप , जहाँ-तहाँ दिखता,
अनल लगाता चले , राम जयघोष में .
पदाघात कर-कर ,सदन ढहाता जाए,
कुंजर प्रवेश करे , मानों कंज-कोष में .
छिप जाते लंकवासी , देख-देख हनुमान ,
छिपते हैं लवा मानो ,द्विजराज-कोप में.
जातुधान मारे जाते , वानर-हुंकार से ,
मरते शशक मानो , केसरी के घोष में .
जातुधान रमणियाँ , भयभीत बिलखती ,
हाय !मैया करती वो , अश्रु ढुलकाती हैं .
भयंकर ज्वाल देख , भैरव रूप कपि देख ,
ओह !तात कहती वो,संज्ञा-हीन होती हैं .
भीषण विस्फोट होते , सदन के ढूह होते,
पविकर्ण होती जाती , गर्भ खिसकाती हैं.
वह्नि फूँकते कपि को , महाकाल सम देख ,
हृदय दबाती हुई , वहीँ प्राण खोती हैं .
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