Monday, 10 September 2012




विभीषण के सम्मुख  , इन्द्रजीत कह पड़ा , 
                   कहने से पूर्व तात , विचार तो कीजिए . 
आप रक्ष वंश के ही , रक्ष वंश आप का ही ,
                   रक्ष वृत्ति के विरुद्ध , भाषण न कीजिए .
नृप श्रेष्ठ रावण के , अनुज ही बने रहें ,
                   उन की कृपा से आप , सुख से विचरिए.
आप सम भीरु कोई , नहीं रक्ष बाल तक .
                   भय अति सालता  तो , बाल-संग रहिए . 

इन्द्रजीत कथन से , निशाचर हर्ष भरे ,
                  नृप मन मोद भरे , कहता "उचित"  है .
रावण सम्मुख हो के , कहता है वह वीर ,
                  राम  युद्ध चाहते हैं , युद्ध  ही  उचित है . 
निशाचर अतुलित  , बल और वीरता में,
                 अन्य का विरुद गाये  , रोकना उचित है .
मम शर अनुगूंज , आज तक गूंजती है ,
                  देवराज  युद्ध - कथा , कहना  उचित  है . 

देवराज इन्द्र को भी , युद्ध में पकड़ लाये ,
                  स्वर्गपति धरा पर , बंदी वो हमारे थे .
भयंकर युद्ध हुआ  , देव पलायन हुआ ,
                  पूर्ण स्वर्ग रिक्त हुआ , घोष ही हमारे थे .
गजराज एरावत , श्वेत दन्त खो कर के ,
                  धरा पर लाया गया , कौशल हमारे थे .
अमरों की नहीं चली , कब नर की चलेगी ,
                  तात  तुम देख आओ , शौर्य जो हमारे थे .

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