विभीषण के सम्मुख , इन्द्रजीत कह पड़ा ,
कहने से पूर्व तात , विचार तो कीजिए .
आप रक्ष वंश के ही , रक्ष वंश आप का ही ,
रक्ष वृत्ति के विरुद्ध , भाषण न कीजिए .
नृप श्रेष्ठ रावण के , अनुज ही बने रहें ,
उन की कृपा से आप , सुख से विचरिए.
आप सम भीरु कोई , नहीं रक्ष बाल तक .
भय अति सालता तो , बाल-संग रहिए .
इन्द्रजीत कथन से , निशाचर हर्ष भरे ,
नृप मन मोद भरे , कहता "उचित" है .
रावण सम्मुख हो के , कहता है वह वीर ,
राम युद्ध चाहते हैं , युद्ध ही उचित है .
निशाचर अतुलित , बल और वीरता में,
अन्य का विरुद गाये , रोकना उचित है .
मम शर अनुगूंज , आज तक गूंजती है ,
देवराज युद्ध - कथा , कहना उचित है .
देवराज इन्द्र को भी , युद्ध में पकड़ लाये ,
स्वर्गपति धरा पर , बंदी वो हमारे थे .
भयंकर युद्ध हुआ , देव पलायन हुआ ,
पूर्ण स्वर्ग रिक्त हुआ , घोष ही हमारे थे .
गजराज एरावत , श्वेत दन्त खो कर के ,
धरा पर लाया गया , कौशल हमारे थे .
अमरों की नहीं चली , कब नर की चलेगी ,
तात तुम देख आओ , शौर्य जो हमारे थे .
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