सुन्दर व्यवस्था रहे , दृढ प्रबंधन रहे ,
पर स्वजन ही सदा ,गुह्य छिद्र देखते .
नवीन विकास हेतु , क्षिप्रगति चाही गयी ,
पर स्वजन ही सदा , राह-शैल बनते .
प्रगति में बाधक जो , मूल से हटाने होते ,
पर स्वजन ही सदा , आलोचक रहते .
सत्ता और शासन का , अधिकार गुरु देते ,
पर स्वजन ही सदा , घातक से रहते .
पर स्वजन ही सदा ,गुह्य छिद्र देखते .
नवीन विकास हेतु , क्षिप्रगति चाही गयी ,
पर स्वजन ही सदा , राह-शैल बनते .
प्रगति में बाधक जो , मूल से हटाने होते ,
पर स्वजन ही सदा , आलोचक रहते .
सत्ता और शासन का , अधिकार गुरु देते ,
पर स्वजन ही सदा , घातक से रहते .
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