Saturday, 8 September 2012

विभीषण द्वारा प्रहस्त को फटकार-

वाहिनी का आगमन , चिंता का विषय है ,
                 वाहिनी जो चढ़ आई ,कारण को खोजिए .
सीता का हरण किया , रामदूत रिक्त गया ,
                 रामाज्ञा अवहेलना , कारण  को  मानिए .
कार्य के निरोध  हेतु , कारण निरोध करें ,
                 सीता सौंप क्षमा मांगे , भय मुक्त होइए  .
युद्ध कोई हल नहीं , विवाद उचित नहीं ,
                 राघव  अतुल्य  वीर , कौतुक न जानिए .

भीषण प्रहस्त रक्ष ,सरोष वो बोल पड़ा,
                 हम सब यहाँ बैठे , संशय क्यों पालते ? 
नर नाग किन्नर हो , छलि-बलि देव चाहे,
                 दधि सम मथ दिए , ये भी मथ डालते .
अगणित वीर यहाँ , इन्द्रजीत वीर यहाँ ,
                 रावण सा नृप यहाँ , राम को न जानते .
विभीषण आप जैसा , भयभीत नहीं कोई ,
                 रावण अनुज हो के , भय - भ्रम पालते . 

अनुचित कथन से , विभीषण चीख पड़े , 
                 गंभीर गुहा से जैसे , केसरी गरजता .
तुम जैसे ही प्रहस्त , पार्षद भरे हुए हैं ,
                 आत्ममुग्ध रहे सदा , नृप भी बहलता .
विनय स्वभाव मेरा , पानी की तरह मानो ,
                 पानी सदा उग्र होता , लेकर तरलता .
राम सम तुम नहीं , तुम सम राम नहीं ,
                 राम-धनु प्रत्यंचा से , त्रैलोक्य दहलता . 


आत्ममुग्धता से रक्ष , स्वेच्छाचारी हो गए हैं ,
                  मर्यादित कर्म नहीं , तार-तार सत्य है .
मार दिया सृजन को , पाल लिया विध्वंस को ,
                   हरण-दलन मुख्य , तार-तार मूल्य है,
मन के ही क्रीत रहे , भोग में ही लीन रहे ,
                  संविधान सोया रहा , तार-तार तन्त्र है .
स्वार्थ यहां मुख्य बना, परमार्थ गौण बना ,
                   दिशाहीन मंत्रणा है , तार-तार मन्त्र है .


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