प्रभु नम्र निवेदन , आप के समक्ष है ,
सत्य यह रक्ष-राज , लंका अपराधी है .
सीता हरी हुई आई , विपदा भी साथ आई ,
वानर ने आ कर के , उधम मचाई है .
वीर कई मारे गए , हाथ से तनय गया ,
तुस सम फूँक कर , लंका को जलाई है .
रामदूत लौट गया , सीता सहिदानी सह ,
राम ने सीता के हेतु , वाहिनी चढ़ाई है .
विभीषण कथन से , लंकापति काँप गया ,
उदधि लहर मानो , काट गयी कूल को .
हो कर के सरोष वो , अनुज पे चढ़ कहे ,
समझ में आता मुझे , तुम प्रतिकूल हो .
लंकेश के छत्र तले , नित प्राण धरते हो ,
दृष्टिहीन हो कर के , कर रहे भूल हो .
विमुख हो कर बंधु , मृत्यु ही बुलाते हो ,
मंत्रणा स्वीकार वही , मम अनुकूल हो .
विभीषण हाथ जोड़ , सभा मध्य कह चले ,
कृपा कर सुन लें जो , कहता हितार्थ हूँ.
प्रतिकूल न मानिए , वो अनुकूल जानिए ,
राज अधिकारी भी हूँ , कहता धर्मार्थ हूँ .
प्रभु के ही छत्र तले , प्राण नित पुष्ट करूँ ,
छत्र यह पूर्ण रहे , गूढ़ चिंतनार्थ हूँ .
आगत ये मित्र कहे , मंत्रणा उचित पर ,
सर्व हित चाहता हूँ , पाता परमार्थ हूँ .
सत्य यह रक्ष-राज , लंका अपराधी है .
सीता हरी हुई आई , विपदा भी साथ आई ,
वानर ने आ कर के , उधम मचाई है .
वीर कई मारे गए , हाथ से तनय गया ,
तुस सम फूँक कर , लंका को जलाई है .
रामदूत लौट गया , सीता सहिदानी सह ,
राम ने सीता के हेतु , वाहिनी चढ़ाई है .
विभीषण कथन से , लंकापति काँप गया ,
उदधि लहर मानो , काट गयी कूल को .
हो कर के सरोष वो , अनुज पे चढ़ कहे ,
समझ में आता मुझे , तुम प्रतिकूल हो .
लंकेश के छत्र तले , नित प्राण धरते हो ,
दृष्टिहीन हो कर के , कर रहे भूल हो .
विमुख हो कर बंधु , मृत्यु ही बुलाते हो ,
मंत्रणा स्वीकार वही , मम अनुकूल हो .
विभीषण हाथ जोड़ , सभा मध्य कह चले ,
कृपा कर सुन लें जो , कहता हितार्थ हूँ.
प्रतिकूल न मानिए , वो अनुकूल जानिए ,
राज अधिकारी भी हूँ , कहता धर्मार्थ हूँ .
प्रभु के ही छत्र तले , प्राण नित पुष्ट करूँ ,
छत्र यह पूर्ण रहे , गूढ़ चिंतनार्थ हूँ .
आगत ये मित्र कहे , मंत्रणा उचित पर ,
सर्व हित चाहता हूँ , पाता परमार्थ हूँ .
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