Wednesday 12 September 2012

इन्द्रजीत कथन से , विभीषण रुष्ट हुए ,
               तर्जनी वे तान कहे , अभी आप बाल हैं .
तात सम पद मम , भूल गए कौन हूँ मैं ,
               बल के प्रभाव में ही , मद - भरे भाव हैं .
भूल गये सदाचार , ओढ़ लिए कदाचार ,
               आचरण विहीन हैं , तुच्छ  व्यवहार हैं .
साधारण नर नहीं , राम और लक्ष्मण हैं ,
               सुग्रीव के सह मानो , दहते वे ज्वाल हैं . 

कहने को इन्द्रजीत , रावण तनय तुम ,
                रावण  तनय  कहाँ , अरि सम लगते .
रक्ष-वृन्द के कथन , नृप के विनाश हेतु ,
                पुष्ट किये जा रहे हो , बोध हीन लगते .
नृप भ्रष्ट करने में , सहायक लगे हुए ,
                बलहीन  नृप  चाहे , अंध  सम लगते . 
नृप को उचित राह , नहीं दिखलाते सब ,
                अंधकूप  में  धकेले , तुम  सह  लगते . 

सुनो अब इन्द्रजीत , तुम सब रक्ष वीर ,
                भूपति में  भ्रम भर , अहित  ही करते .
निजता के हेतु सब , स्वेच्छाचार करते हो ,
                रक्ष  और रक्ष-नृप , व्यसन  ही करते  .
राम सदा सत्य सह , विराट व्यक्तित्त्व वह ,
                राजन को अग्र कर , निजता ही करते .
अतल-वितल तक , राम-शर गूंजते हैं ,
                संधान तुम्हारी ओर , राघव ही करते .



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