इन्द्रजीत कथन से , विभीषण रुष्ट हुए ,
तर्जनी वे तान कहे , अभी आप बाल हैं .
तात सम पद मम , भूल गए कौन हूँ मैं ,
बल के प्रभाव में ही , मद - भरे भाव हैं .
भूल गये सदाचार , ओढ़ लिए कदाचार ,
आचरण विहीन हैं , तुच्छ व्यवहार हैं .
साधारण नर नहीं , राम और लक्ष्मण हैं ,
सुग्रीव के सह मानो , दहते वे ज्वाल हैं .
कहने को इन्द्रजीत , रावण तनय तुम ,
रावण तनय कहाँ , अरि सम लगते .
रक्ष-वृन्द के कथन , नृप के विनाश हेतु ,
पुष्ट किये जा रहे हो , बोध हीन लगते .
नृप भ्रष्ट करने में , सहायक लगे हुए ,
बलहीन नृप चाहे , अंध सम लगते .
नृप को उचित राह , नहीं दिखलाते सब ,
अंधकूप में धकेले , तुम सह लगते .
सुनो अब इन्द्रजीत , तुम सब रक्ष वीर ,
भूपति में भ्रम भर , अहित ही करते .
निजता के हेतु सब , स्वेच्छाचार करते हो ,
रक्ष और रक्ष-नृप , व्यसन ही करते .
राम सदा सत्य सह , विराट व्यक्तित्त्व वह ,
राजन को अग्र कर , निजता ही करते .
अतल-वितल तक , राम-शर गूंजते हैं ,
संधान तुम्हारी ओर , राघव ही करते .
तर्जनी वे तान कहे , अभी आप बाल हैं .
तात सम पद मम , भूल गए कौन हूँ मैं ,
बल के प्रभाव में ही , मद - भरे भाव हैं .
भूल गये सदाचार , ओढ़ लिए कदाचार ,
आचरण विहीन हैं , तुच्छ व्यवहार हैं .
साधारण नर नहीं , राम और लक्ष्मण हैं ,
सुग्रीव के सह मानो , दहते वे ज्वाल हैं .
कहने को इन्द्रजीत , रावण तनय तुम ,
रावण तनय कहाँ , अरि सम लगते .
रक्ष-वृन्द के कथन , नृप के विनाश हेतु ,
पुष्ट किये जा रहे हो , बोध हीन लगते .
नृप भ्रष्ट करने में , सहायक लगे हुए ,
बलहीन नृप चाहे , अंध सम लगते .
नृप को उचित राह , नहीं दिखलाते सब ,
अंधकूप में धकेले , तुम सह लगते .
सुनो अब इन्द्रजीत , तुम सब रक्ष वीर ,
भूपति में भ्रम भर , अहित ही करते .
निजता के हेतु सब , स्वेच्छाचार करते हो ,
रक्ष और रक्ष-नृप , व्यसन ही करते .
राम सदा सत्य सह , विराट व्यक्तित्त्व वह ,
राजन को अग्र कर , निजता ही करते .
अतल-वितल तक , राम-शर गूंजते हैं ,
संधान तुम्हारी ओर , राघव ही करते .
No comments:
Post a Comment