मैंने चाहा खुल जाए ,
बंद पड़ी
कुछ खिड़कियाँ .
हर खिड़की से चेहरा झाँके ,
चेहरा देखे चलती गलियाँ .
बंद कपाटों के पीछे तो
सिसक रही
बस सिसकियाँ
हर सिसकी में अपना रहता ,
अपना मांगे अपनी खुशियाँ .
सतरंगी पंख फैलाये ,
उड़ना चाहे ,
कुछ तितलियाँ .
नम्र पवन अब देती निमंत्रण ,
देती निमंत्रण कोमल कलियाँ .
आती होगी तुम को भी ,
मीठी-मीठी ,
कुछ हिचकियाँ ,
समझ लेना अपना ही भूखा,
झूझ रहा कर के मधुकरियाँ.
दर्द ह्रदय में करवट ले के
तीखी काटे
कुछ चुटकियाँ ,
तब साथ मेरे तुम चल सकते हो ,
तब तक खोल चलूँ वे खिड़कियाँ .
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