रेत में चलते हुए तुम ,
थक गये क्या ?
रेत के विकृत चरण में,
झुक गये क्या ?
शुष्क दानव नित धधक कर ,
घूरता है,
छाँव - पानी की जगह बस,
क्रूरता है,
मध्य इस के खेजड़ी आदर्श है ,
हंस रही है ,
बंट गये क्या ?
ठंडी हवाओं को जला कर ,
ज्वाल करता ,
धूल - धक्कड़ को उड़ा कर ,
भाल धरता ,
अवसाद का अजगर भयावह ,
लीलता है,
चुक गये क्या ?
इस छोर से उस छोर पसरा ,
पत्थरों सा मौन है,
फैलती है निर्गुणी सी रिक्तता,
परिचित कौन है,
गीत अलगोजा यहाँ पे गा रहा,
प्राण तेरे,
जम गये क्या ?
सांप बिच्छु और कर्कट रेंगते हैं ,
मानता हूँ ,
गिद्ध चीलें और कौए उड़ रहे हैं ,
जानता हूँ ,
प्राण ने संघर्ष कर के है संजोयी,
संजीवनी,
जग गये क्या ?
एक बच्चा हाथ लहरा कर तुम्हें ,
पुकारता है ,
रेत पर जो सर्जना की वह दिखाना ,
चाहता है,
लोग वो ही याद रहते जो बो चले हैं ,
जिजीविषा,
बढ़ गये क्या ?
No comments:
Post a Comment