Sunday, 2 September 2012

बढ़ गये क्या ?



रेत में चलते हुए तुम ,
       थक गये क्या ?
रेत के विकृत चरण में,
       झुक गये क्या ?

शुष्क दानव नित धधक कर ,
          घूरता है,
छाँव - पानी की जगह बस,
          क्रूरता है,
मध्य इस के खेजड़ी आदर्श है ,
           हंस रही है ,
       बंट गये क्या ?

ठंडी हवाओं को जला कर ,
         ज्वाल करता ,
धूल - धक्कड़ को उड़ा कर ,
          भाल धरता ,
अवसाद का अजगर भयावह ,
           लीलता है,
        चुक गये क्या ?

इस छोर से उस छोर पसरा ,
         पत्थरों सा मौन है,
फैलती है निर्गुणी सी रिक्तता,
          परिचित  कौन है,
गीत अलगोजा यहाँ पे गा रहा,
             प्राण तेरे,
          जम गये क्या ?

सांप बिच्छु और कर्कट रेंगते हैं ,
             मानता हूँ ,
गिद्ध चीलें और कौए उड़ रहे हैं ,
             जानता हूँ ,
प्राण ने संघर्ष कर के है संजोयी,
              संजीवनी,
           जग गये क्या ?

एक  बच्चा  हाथ  लहरा  कर तुम्हें ,
             पुकारता है ,
 रेत पर जो सर्जना की वह दिखाना ,
              चाहता है,
लोग वो ही याद रहते जो बो चले हैं ,
              जिजीविषा,
             बढ़ गये क्या ?

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