तेज-बल-शील लिए , राम का विराट रूप ,
अरि जन के समक्ष , पूर्ण काल रूप है .
लेकर विकट धनु , करते संधान जब ,
छोड़े गए तेज बाण , पूर्ण नाग रूप हैं .
यमदंड के समान , चलते तो रुके नहीं ,
श्वांसों के शशक हेतु , दृढ पाश रूप है .
तात दशानन अब , अहंकार छोड़ कर ,
सती सीता सोंप दें , भगवान-रूप हैं .
जानकी प्रसन्न होगी , राघव प्रसन्न होंगे ,
सीता-राम युगल से , क्षमा मांग लीजिए .
हो कर विनम्र आप , राम के समक्ष आप ,
उचित उपहार दे , वय मांग लीजिए .
स्वर्ण मणि रजत से , वस्त्र और भूषण से ,
राघव को मान दे के , कृपा मांग लीजिए .
उमापति देख रहे , राम की लीलाएं सब ,
राम करुणावतार , दया मांग लीजिए .
रावण उखड कर , कह पड़ा सभा मध्य .
अधम निशाचर हो , कटु वाणी रोक लें .
वर्ण के विरुद्ध हो के , करते प्रलाप अद्य ,
शठ निशाचर हए , अरि भाव रोक लें .
नृप का विरोध किया , शासन विरोध किया ,
दंड अनुमान कर , राज - द्रोह रोक लें .
व्यवस्था विरोध करो , गति अवरुद्ध करो ,
विभीषण सह्य नहीं , काल - दंड रोक लें .
अरि जन के समक्ष , पूर्ण काल रूप है .
लेकर विकट धनु , करते संधान जब ,
छोड़े गए तेज बाण , पूर्ण नाग रूप हैं .
यमदंड के समान , चलते तो रुके नहीं ,
श्वांसों के शशक हेतु , दृढ पाश रूप है .
तात दशानन अब , अहंकार छोड़ कर ,
सती सीता सोंप दें , भगवान-रूप हैं .
जानकी प्रसन्न होगी , राघव प्रसन्न होंगे ,
सीता-राम युगल से , क्षमा मांग लीजिए .
हो कर विनम्र आप , राम के समक्ष आप ,
उचित उपहार दे , वय मांग लीजिए .
स्वर्ण मणि रजत से , वस्त्र और भूषण से ,
राघव को मान दे के , कृपा मांग लीजिए .
उमापति देख रहे , राम की लीलाएं सब ,
राम करुणावतार , दया मांग लीजिए .
रावण उखड कर , कह पड़ा सभा मध्य .
अधम निशाचर हो , कटु वाणी रोक लें .
वर्ण के विरुद्ध हो के , करते प्रलाप अद्य ,
शठ निशाचर हए , अरि भाव रोक लें .
नृप का विरोध किया , शासन विरोध किया ,
दंड अनुमान कर , राज - द्रोह रोक लें .
व्यवस्था विरोध करो , गति अवरुद्ध करो ,
विभीषण सह्य नहीं , काल - दंड रोक लें .
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