निर्जन कौने में बैठा
वह पीता है,
उसको रोका तो बोला
घूँट-घूँट ही सही मुझे दर्दों को पीने दो .
रूखे व्यवहारों से मारा,
वह रोता है ,
बिंधा हुआ वह बोला ,
पहचान मिली अब ऐसे ही जीने दो .
टूटन-दरकन में जीता ,
वह दबता है,
कलम उठाई तो वह बोला ,
इन कलमों को अब तीखा लिखने दो .
अश्रु - मिट्टी लिए साथ में,
वह सनता है,
नमक उठा कर वह बोला ,
खार लगाना वो चाहे तो लगने दो .
अपने घावों को खोले ,
वह कंपता है,
अँगुलियों पर गिनते बोला,
मेरे दिन भी आते हैं अब मिलने दो .
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