Thursday, 27 September 2012

घूँट-घूँट ही सही मुझे दर्दों को पीने दो .


         निर्जन कौने में बैठा
              वह पीता है,
          उसको रोका तो बोला
घूँट-घूँट ही सही मुझे दर्दों को पीने दो .

        रूखे व्यवहारों से मारा,
                 वह रोता है ,
          बिंधा हुआ वह बोला ,
पहचान मिली अब ऐसे ही जीने दो .

         टूटन-दरकन में जीता ,
               वह दबता है,
    कलम उठाई तो वह बोला ,
इन कलमों को अब तीखा लिखने दो .

     अश्रु - मिट्टी लिए साथ में,
             वह सनता है,
     नमक उठा कर वह बोला ,
खार लगाना वो चाहे तो लगने दो .

         अपने घावों को खोले ,
            वह कंपता है,
      अँगुलियों पर गिनते बोला,
मेरे दिन भी आते हैं अब मिलने दो .

     

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