Thursday 8 September 2011

वर्षा - ऋतु के उल्लास चक्र में,
नदी -तडाग जल से परिपूरित ,
हरित धरा गर्वोन्नत ,
नव योवना सी ,
हाय ! तभी भीषण विस्फोट से,
दहल उठी सारी दिल्ली .

गतिमय जीवन ,
आता-जाता ,
कहीं संचरण, कहीं परिभ्रमण ,
वर्तुल -विरल- सरल,
जन-धारा,
ऐसे लगता मानो जीवन -नद,
कल-कल करता ,बहता जाता,
उत्साह भरा ,




                

No comments:

Post a Comment

संवेदना तो मर गयी है

एक आंसू गिर गया था , एक घायल की तरह . तुम को दुखी होना नहीं , एक अपने की तरह . आँख का मेरा खटकना , पहले भी होता रहा . तेरा बदलना चुभ र...