नर्स रोगी पर्ची का बकाया ,
एक रूपया नहीं देती है,
खुल्ले नहीं है,बहाना बनाती है,
मेरे चेहरे की मुद्रा ताड़ कर,
पत्नी सफाई देती है-
अब छोड़ो भी, दवा ले आओ जल्दी से .
अनेक सम्भावनाओं को'
अनुभव करता हुआ चल पड़ा ,
दुकानदार ने दवा दी,
और -
अनुभव करता हुआ चल पड़ा ,
दुकानदार ने दवा दी,
और -
हिसाब से एक रूपया लिया कम,
उसे उसका चुकता किया निश्चय से .
नर्स से तुरंत वसूला बकाया ,
पत्नी ने पूछा यह सब क्या?
समजाने के अंदाज में कहा -
प्रिये! यह चरित्र का मामला है.
समजाने के अंदाज में कहा -
प्रिये! यह चरित्र का मामला है.
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
ReplyDeleteटिक सके आदमी के मग में?
खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब ज़ोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
है छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नही जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।