Tuesday, 13 September 2011

आदरणीय मित्रों !
हिंदी -दिवस हिन्दुस्तानी जन-वृन्द के लिए एक उत्सव है,यह दीपावली ,होली, ईद , क्रिसमस डे, ओणम , नव  वर्ष आदि की तरह मनाया जाना चाहिए. परन्तु यह उत्सव मात्र हिंदी -लेखकों और हिंदी- विद्यालयों मैं पढ़नें वालें  
छात्रों का ही रह गया. साहित्य अकादमियां कुछ संस्थानों को पैसा देकर अपना दायित्व पूरा कर लेती हैं. मनाये जाने वाले उत्सव आपसे छिपे नहीं होते हैं. आप उनकी सार्थकता जानते हैं. आप पता नहीं क्यों चुप हैं ? हिंदी हमारी संस्कृति और संस्कार है. यह हमें ईश्वर ने  धरोहर के रूप मैं दी है. यह अगली पीढ़ी को ईमानदारी से सोंपनी है . शोक इस बात का है कि-
                                           "हिंदी दिवस उत्सव के स्थान पर हिंदी का श्राद्ध मात्र बन कर रह गया है."

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